जब तुम नहीं रहोगी
तो कौन बंद कराएगा टी.वी.
ताकि बहराते कानों को सुन सके
ट्रेन की सीटी की आवाज़.
कौन झांक-झांक कर देखेगा
खिड़की के परदे की ओट से
कि स्टेशन से आकर कोई रिक्शा
घर के बाहर रुका तो नहीं.
कौन कहेगा कि आज खाने में
भरवां भिन्डी ज़रूर बनाना,
कौन कहेगा कि चाय में
चीनी बहुत कम डालना.
कौन बतियाएगा घंटों तक,
पूछेगा छोटी से छोटी खबर,
साझा करेगा हर गुज़रा पल
सुख का या दुःख का.
जब मैं हँसूंगा तो कौन कहेगा,
अब बस भी करो,
मेरी आँखें कमज़ोर ही सही,
पर क्या मैं नहीं जानती
कि तुम दरअसल हँस नहीं रहे
हँसने का नाटक कर रहे हो.
तो कौन बंद कराएगा टी.वी.
ताकि बहराते कानों को सुन सके
ट्रेन की सीटी की आवाज़.
कौन झांक-झांक कर देखेगा
खिड़की के परदे की ओट से
कि स्टेशन से आकर कोई रिक्शा
घर के बाहर रुका तो नहीं.
कौन कहेगा कि आज खाने में
भरवां भिन्डी ज़रूर बनाना,
कौन कहेगा कि चाय में
चीनी बहुत कम डालना.
कौन बतियाएगा घंटों तक,
पूछेगा छोटी से छोटी खबर,
साझा करेगा हर गुज़रा पल
सुख का या दुःख का.
जब मैं हँसूंगा तो कौन कहेगा,
अब बस भी करो,
मेरी आँखें कमज़ोर ही सही,
पर क्या मैं नहीं जानती
कि तुम दरअसल हँस नहीं रहे
हँसने का नाटक कर रहे हो.
बहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी रचना......
सादर
अनु
सुखद एहसास।
जवाब देंहटाएंसही-सुख-दुख माँ संग जो बाँटे जा सकते हैं किसी और के संग नहीं........
जवाब देंहटाएंखूबसूरत एहसास .... बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अहसासों की सुखद प्रस्तुति,,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST,,,इन्तजार,,,
गहराई है
जवाब देंहटाएंमाँ के साथ बिताए सुखद अहसास...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन सुखद प्रस्तुति,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST काव्यान्जलि ...: रक्षा का बंधन,,,,