मुझे लगता है
कि जब मैं घर पर नहीं होता,
मेरे घर की दीवारें
आपस में ख़ूब बातें करती हैं.
खिड़कियाँ,रोशनदान,
सब शामिल हो जाते हैं गप्पों में,
दरवाज़े भी हँसने लगते हैं.
मैं जब घर पर रहता हूँ,
तो सब चुप रहते हैं,
उतरे हुए होते हैं उनके चेहरे,
सब मेरे जाने का इंतज़ार करते हैं.
मुझे अच्छा नहीं लगता,
उन्हें दुखी देखना,
अक्सर मैं सोचता हूँ
कि अबकी बार निकलूँ ,
तो वापस घर न लौटूं.