शुक्रवार, 26 अप्रैल 2019
शुक्रवार, 19 अप्रैल 2019
शुक्रवार, 12 अप्रैल 2019
३५४.न्याय
अगर सूरज हो,
तो बाहर आओ,
बादलों में दुबके रहोगे,
तो कोई नहीं पूछेगा तुम्हें.
पहाड़ों के पीछे से,
समुद्र के पार से,
जहाँ से भी निकल सको,
अपने पूरे सौंदर्य में निकलो.
कुंकुम बिखेर दो
धरती के कण-कण पर,
दूर भगा दो अँधेरा,
जान डाल दो
ठिठुरी हुई हड्डियों में.
फिर भी अगर होने लगे
तुम्हारी उपेक्षा,
तो टेढ़ी करो ऊँगली,
सिर पर चढ़ जाओ,
आग बरसाओ.
फिर देखना,
कैसे होता है तुम्हारे साथ न्याय,
कैसे मिलती है तुम्हें वह जगह,
जिसके तुम हक़दार हो.
शुक्रवार, 5 अप्रैल 2019
३५३. पिता का जाना
मैंने देखा,
पिता को जाते,
अचानक,बिना-वजह.
उनके चेहरे पर थी
रुकने की ख़्वाहिश,
उनकी आँखों में बेबसी,
उनके होंठों पर थे
कुछ अस्पष्ट-से शब्द,
उनके हाथों में कोई
अजनबी-सा इशारा.
क्या था उनके दिल में,
न वे समझा पाए,
न मैं समझ पाया.
मैं बदहवास-सा दौड़ा,
रोकने की कोशिश की,
हाथ पकड़े उनके,
पर उनको नहीं पकड़ पाया.
पिता को जाते,
अचानक,बिना-वजह.
उनके चेहरे पर थी
रुकने की ख़्वाहिश,
उनकी आँखों में बेबसी,
उनके होंठों पर थे
कुछ अस्पष्ट-से शब्द,
उनके हाथों में कोई
अजनबी-सा इशारा.
क्या था उनके दिल में,
न वे समझा पाए,
न मैं समझ पाया.
मैं बदहवास-सा दौड़ा,
रोकने की कोशिश की,
हाथ पकड़े उनके,
पर उनको नहीं पकड़ पाया.
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