बड़ी फीकी रही इस बार की होली,
न किसी ने रंग डाला, न गुलाल,
न खिड़की के पीछे छिपकर
किसी ने कोई गुब्बारा फेंका,
न कोई भागा दूर से
पिचकारी की धार छोड़कर,
न कोई शरारत, न ज़बरदस्ती,
ऐसी भी क्या होली!
साबुन-तेल सब धरे रह गए,
बड़ी स्वच्छ, बड़ी स्वस्थ रही
इस बार की होली- नीरस सी,
कब आई,कब गई, पता नहीं.
होली के बाद मैं सोचता हूँ
कि इस साल मैंने दोस्त भी खोए
और दुश्मन भी,
न दोस्तों ने होली पर याद किया,
न दुश्मनों ने होली का फ़ायदा उठाया.
न किसी ने रंग डाला, न गुलाल,
न खिड़की के पीछे छिपकर
किसी ने कोई गुब्बारा फेंका,
न कोई भागा दूर से
पिचकारी की धार छोड़कर,
न कोई शरारत, न ज़बरदस्ती,
ऐसी भी क्या होली!
साबुन-तेल सब धरे रह गए,
बड़ी स्वच्छ, बड़ी स्वस्थ रही
इस बार की होली- नीरस सी,
कब आई,कब गई, पता नहीं.
होली के बाद मैं सोचता हूँ
कि इस साल मैंने दोस्त भी खोए
और दुश्मन भी,
न दोस्तों ने होली पर याद किया,
न दुश्मनों ने होली का फ़ायदा उठाया.