इस बार तो हद कर दी तुमने,
अपने पुराने खत वापस मांग लिए,
पर ऐसी कई चीज़ें हैं,
जो न तुम मांग सकती हो,
न मैं दे सकता हूँ.
भीड़ में नज़रें बचाकर
मेरी ओर उठतीं तुम्हारी निगाहें,
डरी-डरी सी तुम्हारी मुस्कराहटें,
मेरी ओर बढ़ते तुम्हारे ठहरे-से कदम
तुम्हारे कपड़ों की सरसराहट,
तुम्हारी उँगलियों की छुअन -
सब कुछ अब भी मेरे पास है,
तुम्हारे खतों से ज़्यादा महफ़ूज़.
इसलिए कहता हूँ,
क्या करोगी खत वापस लेकर,
इन्हें मेरे पास ही रहने दो,
उन तमाम यादों की तरह,
जो मैं चाहूँ भी
तो तुम्हें लौटा नहीं सकता.