गृहिणी बना रही है चपातियाँ,
जो फूल उठती हैं हर कोने से,
बन जाती हैं नर्म,मुलायम,जायकेदार.
कभी-कभी जब कहीं खो जाती है गृहिणी,
तो फट जाती हैं फूलती हुई चपातियाँ,
चिपक जाते हैं उनके पेट पीठ से,
फिर कभी नहीं फूलतीं चपातियाँ.
गृहिणी सोचती है,क्यों नहीं फटती वह
इन चपातियों की तरह,
न जाने कितनी जगह है उसके अंदर
कि वह फूलती ही चली जाती है.
कभी-कभी गृहिणी को लगता है,
बस बहुत हुआ, अब और नहीं,
अब तो वह फट के ही मानेगी,
पर वह फट नहीं पाती,
थोड़ा और फूल के रह जाती है.
जो फूल उठती हैं हर कोने से,
बन जाती हैं नर्म,मुलायम,जायकेदार.
कभी-कभी जब कहीं खो जाती है गृहिणी,
तो फट जाती हैं फूलती हुई चपातियाँ,
चिपक जाते हैं उनके पेट पीठ से,
फिर कभी नहीं फूलतीं चपातियाँ.
गृहिणी सोचती है,क्यों नहीं फटती वह
इन चपातियों की तरह,
न जाने कितनी जगह है उसके अंदर
कि वह फूलती ही चली जाती है.
कभी-कभी गृहिणी को लगता है,
बस बहुत हुआ, अब और नहीं,
अब तो वह फट के ही मानेगी,
पर वह फट नहीं पाती,
थोड़ा और फूल के रह जाती है.