रेल की पटरियाँ
न जाने कब से बिछी हैं
अपनी जगह पर,
इनपर से रोज़ गुज़रती हैं
बहुत सी रेलगाड़ियाँ.
कभी-कभार कोई आता है,
इनके पेंच कस जाता है,
इनपर हथौड़ा मार जाता है,
फिर भी ये डटी रहती हैं.
दर्द सहकर भी अपनी जगह
पड़ी रहती हैं रेल की पटरियाँ,
उन्हें महसूस करना होता है
यात्रियों को उनकी
मंज़िल तक पहुँचाने का सुख.