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शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2014

११७. सुबह-सुबह




सूरज निकलने के ठीक पहले 
कितना अच्छा लगता है सब कुछ!

चहचहाने लगते हैं 
घोंसलों से निकलकर परिंदे ,
रात भर की नींद से जागकर 
कुनमुनाने लगते हैं बच्चे,
दिन के पहले आलिंगन को 
बेताब हो उठते हैं नए जोड़े.

खेतों में निकल पड़ते हैं किसान,
सैर को निकल पड़ते हैं बूढ़े,
गूँज उठती हैं तरह-तरह की आवाजें,
फिर से जी उठता है जीवन.

सिन्दूरी हो जाता है 
आसमान का एक कोना,
जैसे किसी ने उसके माथे पर 
लाल टीका लगा दिया हो.

ऐसे में मुझे डराती है 
अनिष्ट की आशंका,
ऐसे में मेरा मन करता है 
कि आकाश के दूसरे कोने पर 
एक काला टीका लगा दूं.

शनिवार, 8 फ़रवरी 2014

११६. वरदान

किसी मुसलमान की बगिया में 
एक सुन्दर फूल खिला,
किसी सिख की गाड़ी में 
वह बाज़ार तक पहुंचा,
किसी ईसाई ने उसे बेचा,
किसी हिंदू ने ख़रीदा 
और मूर्ति पर चढ़ाया.
अचानक चमत्कार हुआ,
भगवान प्रकट हुए,बोले,
"बहुत खुश हूँ मैं आज,
आज मांग, जो चाहे मांग."