सूरज निकलने के ठीक पहले
कितना अच्छा लगता है सब कुछ!
चहचहाने लगते हैं
घोंसलों से निकलकर परिंदे ,
रात भर की नींद से जागकर
कुनमुनाने लगते हैं बच्चे,
दिन के पहले आलिंगन को
बेताब हो उठते हैं नए जोड़े.
खेतों में निकल पड़ते हैं किसान,
सैर को निकल पड़ते हैं बूढ़े,
गूँज उठती हैं तरह-तरह की आवाजें,
फिर से जी उठता है जीवन.
सिन्दूरी हो जाता है
आसमान का एक कोना,
जैसे किसी ने उसके माथे पर
लाल टीका लगा दिया हो.
ऐसे में मुझे डराती है
अनिष्ट की आशंका,
ऐसे में मेरा मन करता है
कि आकाश के दूसरे कोने पर
एक काला टीका लगा दूं.