जब घना कोहरा छा जाता है,
हाथ को हाथ नहीं सूझता,
मुझे दिखती है मेरी आकृति,
जो सवाल पूछती है मुझसे-
खुरदुरे, कँटीले सवाल.
ये सवाल कर देते हैं मुझे
असहज, बेचैन, निरुत्तर,
मैं लौट जाना चाहता हूँ
शोर में, अस्त-व्यस्तता में,
पर कोहरा है
कि जल्दी छँटता ही नहीं.
मुझे कोहरा पसंद नहीं,
क्योंकि उसमें दिखती है
मुझे मेरी आकृति,
जिससे मैं डरता हूँ,
जो सवाल बहुत पूछती है.