कुछ साल पहले तक
सड़कों पर गाँधी मिल जाया करते थे.
उनसे मिलकर अच्छा लगता था,
लगता था, सरलता और त्याग जिंदा हैं
और जिंदा है, भरोसेमंद नेतृत्व,
पर अब स्थितियां बदल गई हैं,
अब सड़कों पर केवल नाथूराम दिखते हैं,
उनके हाथों में बंदूकें
और आँखों में हैवानियत होती है,
उनके शब्द ताज़ा घावों पर
नमक-जैसा असर करते हैं.
उन्हें मालूम है, पर नहीं बताते
कि सारे गाँधी कहाँ चले गए.
मुश्किल है, उनका लौटकर आना,
अब उनके बिना ही जीना होगा.
जो गाँधी गायब हुए हैं, बहुत अहिंसक हैं,
आत्मरक्षा में भी हथियार नहीं उठाते.
सड़कों पर गाँधी मिल जाया करते थे.
उनसे मिलकर अच्छा लगता था,
लगता था, सरलता और त्याग जिंदा हैं
और जिंदा है, भरोसेमंद नेतृत्व,
पर अब स्थितियां बदल गई हैं,
अब सड़कों पर केवल नाथूराम दिखते हैं,
उनके हाथों में बंदूकें
और आँखों में हैवानियत होती है,
उनके शब्द ताज़ा घावों पर
नमक-जैसा असर करते हैं.
उन्हें मालूम है, पर नहीं बताते
कि सारे गाँधी कहाँ चले गए.
मुश्किल है, उनका लौटकर आना,
अब उनके बिना ही जीना होगा.
जो गाँधी गायब हुए हैं, बहुत अहिंसक हैं,
आत्मरक्षा में भी हथियार नहीं उठाते.