मैं पानी बनना चाहता हूँ
ताकि सूखे होंठों की प्यास बुझा सकूं,
मैं रोटी बनना चाहता हूँ
ताकि पिचके पेटों की भूख मिटा सकूं.
मैं फूल बनना चाहता हूँ
ताकि सूने आंगन में महक सकूं,
मैं हवा बनना चाहता हूँ
ताकि थके जिस्मों का पसीना सोख सकूं.
मैं आंसू बनना चाहता हूँ
ताकि बहा दूँ कोई जमी हुई पीड़ा,
मैं बादल बनना चाहता हूँ
ताकि बरस जाऊं सूखी ज़मीन पर कहीं.
मैं तितली बनना चाहता हूँ,
पक्षी बनना चाहता हूँ,
जुगनू बनना चाहता हूँ,
मैं कुछ भी बन सकता हूँ,
पर नहीं बनना मुझे आदमी.