वार्डरॉब उदास हैं, पोशाकें परेशान हैं, कोई नहीं ले रहा उनकी सुध, कोई नहीं पूछ रहा आईने से कि कौन सी ड्रेस फबेगी उस पर. गहने बंद हैं पिटारियों में, हसरत से देख रहे हैं गृहिणियों को, मेकअप का सामान घुट रहा है डिबियों-बोतलों में. बीमार कर रखा है सबको कोरोना ने, सबको इंतज़ार है लॉकडाउन टूटने का.
अच्छा है,ख़ुद से मुलाक़ात हो जाती है, चिड़ियों से बात हो जाती है, फूलों के रंग देख लेते हैं, सूरज का डूबना देख लेते हैं. पर याद आते हैं लोगों के रेले, हाट में लगे सब्जियों के ठेले, एक दूजे से टकराकर निकलना, खोमचों पर खाने के लिए मचलना. अच्छा है, घरवालों के साथ रहते हैं, बहुत कुछ कहते,बहुत कुछ सुनते हैं, पर याद आता है,पार्टियों के लिए सजना और घर की कॉल बेल का अचानक से बजना.
एक चूहा बिल से निकला, थोड़ी देर घर में घूमा, फिर वापस बिल में घुस गया. उसने दूसरे चूहों से कहा, 'अभी कुछ दिन बिल में रहो, हमारे फ्लैट पर दूसरे चूहों ने कब्ज़ा कर लिया है, इंतज़ार करो उनके जाने का, जल्दी ही यह फ्लैट फिर से हमारा होगा.'
अब जब घर में हो, तो बनाओ कुछ नए पुल, मरम्मत करो उन पुराने पुलों की, जिनमें दरारें आ गई हैं, जो टूटने की कगार पर हैं. *** अब जब घर में हो, तो ध्यान से देखना, वे काम कैसे पूरे होते हैं, जिनके बारे में तुम सोचते थे कि अपने आप हो जाते हैं. *** अब जब घर में हो, तो अपने अन्दर देखना, तुम हैरान रह जाओगे, जब वहां तुम्हारी मुलाकात एक अजनबी से होगी.
चलो, आज घर में हैं, तो थोड़ी सफ़ाई करते हैं. तोड़ देते हैं अहम के जाले, बुहार देते हैं ग़लतफ़हमियों की धूल, डाल देते हैं मशीन में रिश्तों की चादरें, उतार देते हैं उन पर जमीमैल. शिकायतों का कचरा, जो भरा पड़ा है अलमारियों-दराज़ों में, ढूंढ कर निकालते हैं उसे, फेंक आते हैं कूड़ेदान में. एक बाल्टी लेते हैं, डालते हैं ढक्कन-भर प्यार का फिनायल और लगा देते हैं पोंछा समूचे घर में.
अब जब घर में हो, तो कभी आईना देख लेना, फिर सच-सच बताना, क्या तुम वही हो, जो तुम सोचते हो कि तुम हो. *** अब जब घर में हो, तो उनकी भी सुध लो, जो सालों से घर में हैं, पर बेघर हैं. *** अब जब घर में हो, तो थोड़ा शांत बैठो, बहुत भाग चुके , इतना कि भागते-भागते तुम ख़ुद से आगे निकल गए हो. *** अब जब घर में हो, तो गिनो, तुम्हारे आस-पास कितनी खाइयाँ हैं, सबको पाटने के लिए तुम्हें कितना लम्बा लॉकडाउन चाहिए?
पंछियों, इतना मत इतराओ, किसी भ्रम में न रहो, हम अभी यहीं हैं, इसी दुनिया में, बस चंद रोज़ और, हम लौट कर आएंगे, तुम्हें वापस जाना होगा, हमारी दुनिया में तुम्हारे लिए कहीं कोई जगह नहीं है.
अपनी बालकनी में मैंने उम्मीद का एक दिया जलाया, क्रूर हवाएँ रातभर चलती रहीं, दिए की लौ लड़खड़ाती रही, लगा अब बुझी,अब बुझी. सुबह उठकर मैंने देखा, दिया जल रहा था बिना तेल के, बाती का आख़िरी छोर थामे था लौ को, हवाएँ ख़ामोश थीं, दूर आकाश में सूरज निकल रहा था.
न मेरे पास दिया है, न तेल, न बाती, दिवाली की बची कोई मोमबत्ती भी नहीं है, न ही कोई फ़्लैश लाइट है मेरे पुराने मोबाइल में. फिर भी मैं खड़ा हो जाऊंगा घर की देहरी पर, फैला दूंगा हथेलियाँ, आ बैठेगा उनमें कोई-न-कोई जुगनू जब बंद हो जाएंगे बल्ब, जब नहीं जल रही होगी कहीं कोई ट्यूबलाइट.
अरसे बाद सब घर में हैं, मुस्कराती रहती है माँ, सबको लगता है, बिल्कुल ठीक है वह, सबको लगता है, बीमार नहीं है माँ, अभी कुछ नहीं होगा माँ को.
** चल-फिर नहीं सकती थी माँ, बिस्तर में ही रहती थी, अब सब घर में हैं, तो थोड़ा चलने लगी है वह, सब हैरत में हैं कि बिना घुटना बदलवाए कैसे ठीक होने लगी है माँ?