मैंने जो सैकड़ों कविताएँ लिखी हैं,
उनकी समीक्षा होनी चाहिए.
एक-एक कविता को अब
ध्यान से पढ़ा जाना चाहिए,
उसमें खोजा जाना चाहिए
चिलचिलाती गर्मी में
अपने खेत में काम करता
पसीने से लथपथ कोई किसान,
सिर पर ईंट-गारा उठाए
नई बनती किसी इमारत में
बल्लियों के सहारे
ऊपर चढ़ता कोई मज़दूर,
न्याय के लिए अदालतों के
धक्के खाता कोई आम आदमी.
ज़रूरी है कि मेरी कविताओं में
खोजी जाय वह गृहिणी,
जो दिन-रात तिरस्कृत होकर भी
लगी रहती है काम में,
खोजी जाय वह युवती
जिसका दिन-दहाड़े
बलात्कार हो गया था.
ज़रूरी है कि खोजा जाय
वह लाचार बाप,
जिसका इकलौता बच्चा
दवा के इंतज़ार में झूल रहा हो
ज़िन्दगी और मौत के बीच.
मेरी जिन कविताओं में
ऐसा कोई व्यक्ति न मिले,
वे कितनी ही अच्छी
क्यों न लिखी गई हों,
उन्हें बेरहमी से फाड़कर
कूड़े के ढेर में फेंक दिया जाय.