बहुत दिन हो गए हँसे,
आओ, आज तोड़ दें बंधन,
भुला दें शिकवे-शिकायतें,
निकाल फेंकें मन का गुबार,
निहारें काँटों के बीच खिले फूल,
याद करें पुराने मीठे पल.
आओ, आज खुलकर हंसें,
ऐसे कि पागलों से लगें,
कि आंसू आ जाय आँखों में,
कि लोग देखें मुड़-मुड़ कर,
जैसे कि बाढ़ आ जाय
किसी गुमसुम नदी में अचानक.
आओ, आज खूब हंसें,
हँसते रहें सुबह से शाम तक,
जैसे आज हमें मरना हो.