मैं, रंग-बिरंगी, चमकीली,
उड़ती रही हवा में अनवरत,
जाती रही बादलों के पार,
झूमती रही मस्ती में,
झुक-झुक कर देखती रही
नीचे पड़ी बेबस-सी ज़मीन
और उसकी पिद्दी-सी चीज़ों को.
बड़ा भा रहा था मचलना, मटकना,
किसी भी रोक-टोक का न होना,
लगता था जैसे यही मेरा घर है,
जैसे यही मेरी ज़िंदगी है.
न जाने अचानक क्या हुआ,
नियंत्रण खो बैठी मैं खुद पर,
धड़ाम से आ गिरी ज़मीन पर,
जहाँ मुझे लपकने के लिए
लोग बल्लियाँ लिए खड़े थे.
काश, समय रहते मैं जान जाती
कि मेरी डोर किसी और के हाथ में है,
कि आसमान की मेरी उड़ान मेरी नहीं,
कि जो ज़मीन छोटी-सी दिखती है ,
अंततः मुझे वहीँ लौटना है.
उड़ती रही हवा में अनवरत,
जाती रही बादलों के पार,
झूमती रही मस्ती में,
झुक-झुक कर देखती रही
नीचे पड़ी बेबस-सी ज़मीन
और उसकी पिद्दी-सी चीज़ों को.
बड़ा भा रहा था मचलना, मटकना,
किसी भी रोक-टोक का न होना,
लगता था जैसे यही मेरा घर है,
जैसे यही मेरी ज़िंदगी है.
न जाने अचानक क्या हुआ,
नियंत्रण खो बैठी मैं खुद पर,
धड़ाम से आ गिरी ज़मीन पर,
जहाँ मुझे लपकने के लिए
लोग बल्लियाँ लिए खड़े थे.
काश, समय रहते मैं जान जाती
कि मेरी डोर किसी और के हाथ में है,
कि आसमान की मेरी उड़ान मेरी नहीं,
कि जो ज़मीन छोटी-सी दिखती है ,
अंततः मुझे वहीँ लौटना है.