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शुक्रवार, 18 जुलाई 2014

१३३. ख्वाहिश

मैं तुम्हारे जूड़े में खोंसा गया 
एक बेबस फूल हूँ.
लगातार तुम्हारे साथ हूँ,
पर न तुम मुझे,
न मैं तुम्हें देख सकता हूँ.

डाल से अलग हूँ,
एक दिन का मेहमान हूँ,
कल मैं कुम्हला जाऊँगा,
तुम्हारे लायक नहीं रहूँगा.

तुम मुझे खींचकर 
अपने जूड़े से निकालोगी,
किसी गंदे कूड़ेदान में 
या ज़मीन पर फेंक दोगी.

मैं तुमसे नहीं कहूँगा 
कि मुझे जूड़े में रहने दो,
ऐसा कहना अन्याय होगा,
कहूँगा भी तो तुम मानोगी नहीं.

अब एक ही ख्वाहिश है मेरी 
कि मिट्टी में मिलने से पहले 
बस एक बार, सिर्फ़ एक बार 
मैं तुम्हारी नज़रों के सामने रहूँ.

शुक्रवार, 11 जुलाई 2014

१३२. पेड़



पेड़ कई तरह के होते हैं -
कुछ जो छाया देते हैं,
कुछ जो नहीं देते,
कुछ जो फल देते हैं,
कुछ जो नहीं देते,
कुछ जो मीठे फल देते हैं,
कुछ जो कड़वे -
पर सभी जन्म लेते हैं,
सभी बड़े होते हैं,
आदमियों की तरह.

मैंने सुना है कि
जो पेड़ छाया नहीं देते,
जो पेड़ कड़वे फल देते हैं,
वे अमूमन ज़्यादा जीते हैं.

शुक्रवार, 4 जुलाई 2014

१३१. पत्तों से


कब की थम चुकी बारिश,
पत्तों तैयार रहो,
तमतमाता सूरज निकलने ही वाला है.

ये जो इक्का-दुक्का बूँदें 
अब भी तुमसे चिपकी हैं,
धीरे-धीरे फिसल जाएँगी,
तुम्हें बचा नहीं पाएंगी.

हो सके, तो तुम खुद 
इतने शीतल बनो 
कि कोई जला न सके तुम्हें,
या फिर सहने की ताक़त रखो,
मुस्करा के जलना सीखो,
जलन कम महसूस होगी.

फेंक दो सारी बैसाखियाँ,
अब बस कमर कस लो,
यह ताप तुम्हें अकेले ही सहना है.