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बुधवार, 25 अगस्त 2021

५९९. गाँव की लड़की

 


गाँव की वह छोटी-सी लड़की 

सुबह-शाम आँगन बुहारती है,

गाय-भैंसों को चारा देती है,

माँ की बनाई हुई रोटियाँ 

खेत में बाप को पहुँचाती है. 


गाँव की वह छोटी-सी लड़की

बिना नाग़ा स्कूल जाती है,

परीक्षा में अच्छे नंबर लाती है,

हर शाम छोटी बहन को 

पाठ तैयार कराती है. 


गाँव की वह छोटी-सी लड़की

घर के हर बीमार को 

डॉक्टर तक ले जाती है, 

दवा, मिट्टी का तेल,राशन-

ज़रूरत का हर सामान 

दौड़कर दुकान से लाती है. 


गाँव की वह छोटी-सी लड़की

बहुत उदास हो जाती है,

जब भी उसके माँ-बाप कहते हैं,

‘काश,हमारे यहाँ बेटा पैदा होता.’


शुक्रवार, 20 अगस्त 2021

५९८. पसंद

 


कभी-कभी मैं सोचता हूँ 

कि तुममें ऐसा क्या है,

जो चाहने लायक हो. 


तुम्हारा गुस्सा,

तुम्हारा लालच,

तुम्हारा ओछापन,

तुम्हारी संवेदनहीनता -

कौन सा ऐसा ऐब है,

जो तुममें नहीं है?


फिर भी न जाने क्यों,

तुम मुझे बहुत पसंद हो,

सबसे ज़्यादा पसंद,

पर मुझे यह बात 

बिल्कुल पसंद नहीं 

कि मैंने बिना वजह तुम्हें 

इतना पसंद किया.


मंगलवार, 17 अगस्त 2021

५९७. सपने

 

मैं सपने नहीं देखता,

कितनी ही कोशिश क्यों न कर लूँ,

कोशिश से नींद तो आ सकती है,

सपने नहीं।


पर कल रात मैंने सपना देखा 

और सपने में गाँधी को,

उन्होंने पूछा,

‘स्वाधीनता दिवस कैसा रहा?’

मैंने कहा,

‘हर साल जैसा.’

उन्होंने कहा,

‘इस साल सपने देखना,

शायद अगला कुछ अलग हो.’

मैंने कहा,

‘मुझे तो सपने आते ही नहीं।’

वे हंसकर बोले,

‘मैं उन सपनों की बात कर रहा हूँ 

जो जागते हुए देखे जाते हैं. 

सोते में देखे गए सपने 

कुछ हासिल कर पाते हैं क्या?

जागते हुए सपने देखोगे,

सबके लिए देखोगे,

तभी देश स्वाधीन होगा.’


गांधीजी चले गए,

मेरी नींद टूट गई,

मैं सोचता हूँ,

सपने देखना आसान नहीं है,

रात को सपने आते नहीं,

और दिन में सपने देखने का 

न समय है, न साहस.


शनिवार, 14 अगस्त 2021

५९६. गुज़ारिश

 


तुमसे गुज़ारिश है कि आ जाओ, 

मैं कोई शिकायत नहीं करूंगा,

न रूठूँगा,न मनाऊँगा,

न पुरानी बातें दोहराऊंगा,

न तुम्हें असमंजस में डालूँगा. 


तुम कहोगी तो मैं चुप रहूंगा,

कुछ नहीं बोलूंगा,

यहाँ तक कि अपने चेहरे पर 

कोई भाव भी नहीं आने दूंगा,

ध्यान रखूंगा कि मेरी आँखों में

कोई चमक न कौंध जाय. 


घबराओ मत,

बस आ जाओ,

तब तक के लिए आ जाओ,

जब तक कि मर-मर के जीने वाला 

जी-जी के मर न जाय.  


रविवार, 8 अगस्त 2021

५९५.नदी

 


मुझे समंदर से मिलना है,

मुझे तेज़-तेज़ बहने दो, 

मत रोको मेरी राह,

मत रोको मेरा प्रवाह. 


सुदूर पर्वतों से आई हूँ,

लंबा सफ़र तय करना है, 

अभी बहुत दूर बहना है,

लक्ष्य तक पहुंचना है. 


जो मैं चलती रही,

तो तुम्हारा भला ही करूंगी,

तुम्हारी प्यास बुझाऊँगी ,

तुम्हारे खेतों को सींचूँगी,

तुम्हारी भूख मिटाऊँगी. 


ओ मेरे तट पर रहने वालों,

थोड़ा तो क़ाबू रखो ख़ुद पर,

तुम्हारे आत्मघाती लालच की

कोई हद है या नहीं ?


कहीं ऐसा न हो जाय 

कि विकराल रूप दिखाना पड़े मुझे  ,

विध्वंस पर उतरना पड़े

या बिना मंज़िल तक पहुंचे 

बीच में ही मर जाना पड़े. 


मुझे बहने दो, 

मुझे जीने दो,

मेरा जीवित रहना 

तुम्हारे जीने के लिए ज़रूरी है.


गुरुवार, 5 अगस्त 2021

५९४.जन्मदिन


मुझे अपना जन्मदिन अच्छा लगता है,

क्योंकि उस दिन तुमसे बात होती है. 


यूँ  तो तुम फ़ोन कर लेते हो कभी भी,

होली-दिवाली या उसके बिना भी,

पर मेरे जन्मदिन की शुरुआत 

तुम्हारे फ़ोन से ही होती है. 


जो होना तय है,

उसके इंतज़ार में मज़ा है,

जो अचानक हो जाय,

उसमें इंतज़ार का मज़ा कहाँ?


काश ऐसा हो सकता 

कि साल में एक से ज़्यादा 

जन्मदिन हुआ करते 

और हर जन्मदिन पर 

तुम्हारा फ़ोन आया करता. 


मंगलवार, 3 अगस्त 2021

५९३. शहर



इस शहर में कुछ नहीं बदला,

यहाँ सड़कें वही हैं,

मकान वही हैं,

बाज़ार वही हैं. 

गाड़ियाँ वही हैं.


हाँ, थोड़ा सा फ़र्क़ है,

सड़कें वीरान हैं,

लोग घरों में बंद हैं,

वाहन चुपचाप खड़े हैं,

बाज़ार सूने हैं. 


इस शहर में कुछ ख़ास नहीं बदला,

पर अब यह शहर शहर नहीं लगता,

बहुत ज़रूरी है शहर में शोर होना 

शहर को शहर बनाने के लिए.