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शनिवार, 29 जुलाई 2017

२७०. सपने में मुलाक़ात

जब कभी हम मिले,
तुम्हारे साथ कोई था.

मैं अब तक नहीं समझा 
कि मुझमें ऐसा क्या है,
जो तुम्हें मुझसे अकेले में 
मिलने से रोकता है,
ऐसा क्या है मुझमें 
जो मुझसे तुम्हें डराता है.

चलो, अबकी बार मिलो,
तो सपने में मिलना,
अकेले में तुमसे मिलने की 
मेरी तमन्ना पूरी तो हो,
सपने में ही सही.

शुक्रवार, 21 जुलाई 2017

२६९. बूढ़ा


अपने आप से बात करता 
वह बूढ़ा बड़ा अजीब लगता है,
बेपरवाह, बेख़बर,
बस चलता जा रहा है 
अपनी ही धुन में,
ख़ुद से ही बतियाता.

एक वह भी वक़्त था,
जब घिरा रहता था वह 
चाहनेवालों से,
पर अब कोई नहीं,
न कोई दोस्त,
न कोई अपना,
किसी के काम का नहीं,
अब निपट अकेला है वह.

बूढ़ा मजबूर है,
जिससे कोई बात न करे,
वह ख़ुद से बात न करे,
तो और क्या करे?

शनिवार, 15 जुलाई 2017

२६८.ख़तरा

वह जो ख़ुद से 
बात कर रहा है,
इसलिए कर रहा है 
कि दूसरों से बात करने की 
उसको इजाज़त नहीं है.

डरते हैं सब उससे,
न जाने क्या बोल बैठे वह,
किसे शर्मिंदा कर दे, 
किसका नुकसान कर दे. 

पूरे होशो-हवास में है वह,
पर उसे चुप किया जा सके,
तो उसके बोलने का ख़तरा 
क्यों उठाया जाय?

वह ख़ुद से बात कर सकता है,
क्योंकि सबको लगता है,
इसमें कोई ख़तरा नहीं,
पर अनाड़ी हैं सब,
उन्हें नहीं पता 
कि ख़ुद से बात करने में ही 
सबसे ज़्यादा ख़तरा है.

शनिवार, 8 जुलाई 2017

२६७. घास


क्या आपने बारिश के बाद 
कभी घास की खुशबू महसूस की है?
वैसे तो घास जैसी भी हो,
उसकी अपनी महक होती है,
पीली पड़ गई सूखी घास भी 
बहुत खुशबू बिखेरती है,
बस ज़रूरत इस बात की है 
कि उसे घास न समझा जाय.

अगर घास की ओर देखने का 
हमारा नज़रिया बदल जाय,
तो अनाज में जितनी महक होती है,
घास में उससे कम नहीं होती.

महाराणा प्रताप ने घास की रोटी 
कभी मजबूरी में खाई थी,
पर मजबूरी न भी हो,
तो भी घास की रोटी का 
अपना अलग स्वाद होता होगा,
जैसे उसकी अलग खुशबू होती है.