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शनिवार, 28 अक्तूबर 2023

७४०.आँगन


जब से आँगन का 

बंटवारा हुआ,

हमने नहीं बनाए 

पापड़-अचार,

नहीं बनाई 

बड़ी-मंगोड़ी. 


हमने नहीं किया  

संगीत का कार्यक्रम,

अखंड रामायण-पाठ,

नहीं बजाया ढोल,

नहीं बजाई झींझ,

नहीं रखी 

सत्यनारायण-कथा. 


हमने नहीं समेटी 

मिलके कोई चादर,

नहीं निचोड़ी साड़ी

नहीं बुनी निवार . 


अब कोई नहीं चलाता 

बेबी साइकिल यहाँ,

बच्चे नहीं बनाते 

मिलकर रेलगाड़ी. 


कोई नहीं दौड़ता 

किसी दूसरे के पीछे,

किसी का नहीं छिलता  

अब घुटना यहाँ. 


अब नहीं होती यहाँ 

पड़ोसनों से गप्पें,

अब नहीं होते यहाँ 

बच्चों के झगड़े. 


आँगन के बीचों-बीच 

जो तुलसी का चौरा था,

उसका पौधा मर गया है, 

अब नहीं लगती फेरी वहाँ . 


आँगन बँट गया है,

खिंच गई है वहां 

अब एक ऊंची दीवार,

कोई खिड़की नहीं है उसमें. 


आजकल सूरज 

दीवार के इस ओर,

तो चाँद उस ओर चमकता है,

हवा ठिठक जाती है 

दीवार के पास आकर. 


लोग कहते हैं 

कि अब भी बड़े हैं 

आँगन के दोनों हिस्से,

पर मुझे छोटे लगते हैं,

छोटे से ज़्यादा अधूरे।


कितना ही बड़ा क्यों न हो 

किसी घर का आँगन,

एक पूरे आँगन से 

नहीं निकल सकते 

दो साबुत आँगन. 


जो आँगन बहुत बोलता था,

आजकल चुप है,

आजकल आँगनवाले घर 

मुझे बिल्कुल अच्छे नहीं लगते. 


शुक्रवार, 20 अक्तूबर 2023

७३९. प्रवासी पक्षी



इस बार गाँव में 

प्रवासी पक्षी बहुत आए,

रंग-बिरंगे, 

छोटे-बड़े,

अलग-अलग आवाज़ों में 

चहचहानेवाले. 


इस बार गाँव में 

बहुत रौनक़ थी,

मेहमानों के आने से

बहुत ख़ुश थे लोग. 


कोई उदास था,

तो वह बुढ़िया, 

जिसका प्रवासी पक्षी 

इस साल भी 

गाँव नहीं आया था. 

 

शनिवार, 14 अक्तूबर 2023

७३८.अदालत के बाहर

 



मैंने बीस साल पहले

एक युवक को यहाँ देखा था, 

फोटोकॉपी करवा रहा था वह

या शायद कुछ टाइपिंग, 

उसने बड़े अजीब तरीक़े से

एक फ़ाइल बगल में दबा रखी थी। 


उसके सिर पर घने काले बाल, 

बदन पर अच्छे सिले कपड़े, 

पाँवों में चमचमाते जूते थे, 

उसके चेहरे पर मुस्कराहट

और आँखों में उम्मीद थी। 


बीस साल बाद 

आज मैं फिर उधर से गुज़रा, 

मैंने देखा, एक बूढ़ा आदमी

फोटोकॉपी करवा रहा था 

या शायद कुछ टाइपिंग, 

उसके कपड़े फटे हुए थे, 

वह घिसी हुई चप्पलें पहने था। 


उसके चेहरे पर झुर्रियाँ, 

आँखों में मायूसी थी, 

सिर पर बाल लगभग नहीं थे, 

कमर भी थोड़ी झुकी हुई थी। 



उसने बड़े अजीब तरीक़े से

एक फ़ाइल बगल में दबा रखी थी, 

इसी से मैंने पहचाना

कि यह वही आदमी था, 

जिससे मैं बीस साल पहले मिला था।


मंगलवार, 10 अक्तूबर 2023

७३७.निःशब्द कविता

 


मैंने एक कविता लिखी है,

आम कविताओं जैसी कविता,

उसमें गहरे भाव तो हैं,

पर शब्द नहीं हैं. 


यह मैंने काग़ज़ पर नहीं,

किसी क़लम से नहीं,

कुछ सोचकर नहीं,

महसूस करके लिखी है. 


तुम्हारे अलावा कोई और  

पढ़ नहीं पाएगा इसे,

तुम भी नहीं पढ़ पाई,

तो मर जाएगी यह कविता. 


आओ, मेरी आँखों में देखो, 

पढ़ने की कोशिश करो,

अगर तुमने उतना भी पढ़ लिया,

जितना मैंने तुममें पढ़ा है,

तो तुम आसानी से समझ लोगी 

यह बिना शब्दोंवाली कविता.