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शनिवार, 30 दिसंबर 2023

७४९. नया-पुराना साल

 


नूतन वर्ष में 

सभी उल्लास में हैं,

ख़ुशियाँ मना रहे हैं,

इतना लगाव है नए से,

तो पुराने से क्यों चिपके हैं?

++

आओ, नए साल में कुछ नया करें,

कोई नया चोला पहनें,

नया जोश, नए विचार, नए इरादे नहीं,

तो फिर नया क्या है,

सिर्फ़ दीवार पर लटका कैलेंडर?

++

जो पुराना है,

सब बुरा नहीं है,

जो नया है,

सब अच्छा नहीं है, 

नए को अपनाओ,

तो कुछ पुराना भी रखो,

जैसे नया साल साथ रखता है 

पुराने महीने।

++

नए साल में नया क्या है?

वही पुराने महीने,

वही पुराने दिन,

बस तारीखों को मिल जाते हैं 

बदले हुए वार

और चार साल में 

फ़रवरी के हिस्से आ जाती है  

एक दिन की भीख। 

++

नया कुछ नहीं होता,

हो ही नहीं सकता,

मिट्टी वही है,

पानी वही है,

चाक वही है,

पर कुम्हार को लगता है,

उसने कुछ नया गढ़ा है। 

++

रात के बारह बजते ही 

पुराना साल जाएगा,

नया आएगा,

संगम के इस पल में भी 

दोनों मिलेंगे नहीं,

बस दूर से देखेंगे 

एक दूसरे की ओर। 

शुक्रवार, 22 दिसंबर 2023

७४८. शहर में रात

 


नाड़े-सी लटकती सड़कें,

बदहवास दौड़ती गाड़ियाँ,

अकेले टिमटिमाते बल्ब. 


झगड़ते कुत्तों के मुहल्ले,

बिलखती बिल्लियों की गलियाँ,

उचटती नींद से चिपके बदन. 


ऊँघते-से ट्रैफिक सिग्नल,

अनमने-से चेक-पोस्ट,

कुर्सियों पर फैली वर्दियाँ।


पटरियों पर बिछे लोग,

सिरहाने रखी गठरियाँ,

गठरियों में बँधे घर. 


खुलने को है सूरज की रक्तिम आँखें,

आने को है यंत्रणा का एक और दिन. 


शुक्रवार, 15 दिसंबर 2023

७४७. वह लड़की


 

गाँव से निकलते ही वह पेड़ है,

जहाँ वह लटक गई थी 

या लटका दी गई थी,

उसके गले में वही चुन्नी थी,

जिसे ओढ़कर वह घूमा करती थी,

एक ही कमी थी उसमें 

कि वह सुन्दर बहुत थी. 


कोई नहीं जाता अब उस ओर,

कहते हैं, भूत नहीं दिखता उसका,

वह ख़ुद दिखती है लटकी हुई 

और दिखता है उसका दुपट्टा. 


मैं भी नहीं जाता कभी उस ओर,

पर मुझ तक आ जाता है वह पेड़,

वह डाली, वह लड़की, वह दुपट्टा 

मैं इन दिनों भूत-सा दिखता हूँ.



गुरुवार, 7 दिसंबर 2023

७४६.चाँद

 


यह कैसा रहस्य है,

एक चाँद आकाश में है,

दूसरा झील में,

कौन किसकी परछाई है?

दोनों एक ही हैं या अलग-अलग?


आकाशवाला चाँद शांत है,

झीलवाला मचल रहा है, 

आकाशवाले में दाग़ थोड़े ज़्यादा हैं,

वह दूर भी थोड़ा ज़्यादा है,

यह धरती का चाँद है,

वह किसी और का होगा,

इसे छू भी सकते हैं,

उसे बस देख सकते हैं.  


कौन सा चाँद पहले डूबेगा,

जो झील में है वह

या जो झील के बाहर है वह?

या दोनों एक साथ डूबेंगे?


मुझे अच्छे लगते हैं 

दोनों ही चाँद,

कितना अच्छा हो,

अगर दोनों अलग-अलग डूबें. 



बुधवार, 29 नवंबर 2023

७४५ .स्वेटर

 


बहुत प्यार से बुना है 

मैंने तुम्हारे लिए यह स्वेटर,

बहुत मेहनत लगी है इसमें,

ज़िन्दगी के बहुत सारे लम्हे 

लगा दिए हैं मैंने इसे बुनने में,

बिल्कुल फ़िट बैठेगा यह तुम पर,

बहुत जचोगे इसमें तुम.


बस इतना ध्यान रखना  

कि इसके फंदे ही स्वेटर हैं,

उन्हें हटाने की कोशिश मत करना,

वरना सिर्फ़ धागे रह जाएंगे हाथ में,

धागे तुम पहन नहीं पाओगे।

 

बड़े जतन से जब फंदे लगाए जाते हैं,

तब जाकर बनता है एक अच्छा स्वेटर. 




शनिवार, 25 नवंबर 2023

७४४. पुराना घर

 



नया घर पुकारता है, 

कहता है, चले आओ,

यहाँ रहो, 

पर पुराना घर 

कलाई नहीं छोड़ता, 

कहता है,

मैं मानता हूँ 

कि मेरा प्लास्टर झड़ रहा है, 

सीलन से भरे हैं मेरे कमरे,

पर तुम्हारी यादें हैं मुझमें. 


नया घर कहता है,

‘सोचो मत,आ जाओ’,

मैं तुम्हें रहने का सुख दूँगा,

यादों का क्या है, 

मैं भी दूँगा बहुत सारी।


अंततः नया घर जीत जाता है, 

पर नए घर में 

पीछा करती हैं मेरा 

पुराने घर की सिसकियाँ,

इस तरह हर नए घर में 

घुसा रहता है पुराना घर. 


शनिवार, 18 नवंबर 2023

७४३. शोर

 


बहुत शोर है मेरे अंदर, पर कुछ सुनता ही नहीं,

मुझे तो शक़ है, कहीं मैं बहरा तो नहीं. 


बहुत सहा है उसने, पर कहता कुछ नहीं, 

उसके अंदर दबा शोर कहीं गहरा तो नहीं. 


बह रहा है पानी, तो शोर क्यों नहीं है,

नदी जिसे समझा था, सहरा तो नहीं. 


जो शोर कर रहा था, अब चुपचाप क्यों है,

उससे पूछो, उसका ज़मीर कहीं ठहरा तो नहीं. 


अगर बच्चा है वह, तो ख़ामोश क्यों है,

उसके शोर पर किसी का पहरा तो नहीं. 


सोमवार, 13 नवंबर 2023

७४२.बराबर अँधेरा

 




मेरे पड़ोसी की ड्योढ़ी पर

दीया रख गया कोई,

फैल गया उसकी लौ से 

उजाला मेरे दरवाज़े तक. 


अच्छा नहीं लगा मुझे

थोड़ा ज़्यादा उजाला 

पड़ोसी की ड्योढ़ी पर,

जिसने भी दीया रखा,

क्यों नहीं रखा उसने 

मेरी ड्योढ़ी पर?


मैंने बुझा दिया दीया,

अब दोनों जगह अँधेरा था,

मैं ख़ुश था 

कि अँधेरा न कहीं ज़्यादा था,

न कहीं कम,

वह दोनों जगह बराबर था.


गुरुवार, 2 नवंबर 2023

७४१. कुर्सी-टेबल

 


उस घर में 

एक टेबल थी,

एक कुर्सी,

जब से मिले,

साथ-साथ थे

एक ही कमरे में. 


दोनों धीरे-धीरे 

पुराने हो गए हैं,

कुर्सी का एक हाथ, 

टेबल का एक पाँव 

अब टूट गया है. 


इन दिनों कुर्सी बरामदे में, 

टेबल आँगन में है,

उनकी जगह अब 

नई कुर्सी,नया टेबल है. 


दोनों अलग-अलग हैं,

दोनों बेचैन हैं,

दोनों चाहते हैं 

कि साथ-साथ रहें,

जब तक कि वे पूरी तरह

टूट न जायँ. 

 


शनिवार, 28 अक्तूबर 2023

७४०.आँगन


जब से आँगन का 

बंटवारा हुआ,

हमने नहीं बनाए 

पापड़-अचार,

नहीं बनाई 

बड़ी-मंगोड़ी. 


हमने नहीं किया  

संगीत का कार्यक्रम,

अखंड रामायण-पाठ,

नहीं बजाया ढोल,

नहीं बजाई झींझ,

नहीं रखी 

सत्यनारायण-कथा. 


हमने नहीं समेटी 

मिलके कोई चादर,

नहीं निचोड़ी साड़ी

नहीं बुनी निवार . 


अब कोई नहीं चलाता 

बेबी साइकिल यहाँ,

बच्चे नहीं बनाते 

मिलकर रेलगाड़ी. 


कोई नहीं दौड़ता 

किसी दूसरे के पीछे,

किसी का नहीं छिलता  

अब घुटना यहाँ. 


अब नहीं होती यहाँ 

पड़ोसनों से गप्पें,

अब नहीं होते यहाँ 

बच्चों के झगड़े. 


आँगन के बीचों-बीच 

जो तुलसी का चौरा था,

उसका पौधा मर गया है, 

अब नहीं लगती फेरी वहाँ . 


आँगन बँट गया है,

खिंच गई है वहां 

अब एक ऊंची दीवार,

कोई खिड़की नहीं है उसमें. 


आजकल सूरज 

दीवार के इस ओर,

तो चाँद उस ओर चमकता है,

हवा ठिठक जाती है 

दीवार के पास आकर. 


लोग कहते हैं 

कि अब भी बड़े हैं 

आँगन के दोनों हिस्से,

पर मुझे छोटे लगते हैं,

छोटे से ज़्यादा अधूरे।


कितना ही बड़ा क्यों न हो 

किसी घर का आँगन,

एक पूरे आँगन से 

नहीं निकल सकते 

दो साबुत आँगन. 


जो आँगन बहुत बोलता था,

आजकल चुप है,

आजकल आँगनवाले घर 

मुझे बिल्कुल अच्छे नहीं लगते.