नूतन वर्ष में
सभी उल्लास में हैं,
ख़ुशियाँ मना रहे हैं,
इतना लगाव है नए से,
तो पुराने से क्यों चिपके हैं?
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आओ, नए साल में कुछ नया करें,
कोई नया चोला पहनें,
नया जोश, नए विचार, नए इरादे नहीं,
तो फिर नया क्या है,
सिर्फ़ दीवार पर लटका कैलेंडर?
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जो पुराना है,
सब बुरा नहीं है,
जो नया है,
सब अच्छा नहीं है,
नए को अपनाओ,
तो कुछ पुराना भी रखो,
जैसे नया साल साथ रखता है
पुराने महीने।
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नए साल में नया क्या है?
वही पुराने महीने,
वही पुराने दिन,
बस तारीखों को मिल जाते हैं
बदले हुए वार
और चार साल में
फ़रवरी के हिस्से आ जाती है
एक दिन की भीख।
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नया कुछ नहीं होता,
हो ही नहीं सकता,
मिट्टी वही है,
पानी वही है,
चाक वही है,
पर कुम्हार को लगता है,
उसने कुछ नया गढ़ा है।
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रात के बारह बजते ही
पुराना साल जाएगा,
नया आएगा,
संगम के इस पल में भी
दोनों मिलेंगे नहीं,
बस दूर से देखेंगे
एक दूसरे की ओर।