आओ, बारिश में निकलें,
तोड़ दें छाते,
फाड़ दें रेनकोट,
भिगो लें बदन.
सड़क के गड्ढों में
पानी जमा है,
देखते हैं
उसमें उछलकर
कैसा लगता है.
देखते हैं
कि बंद पलकों पर
जब बूँदें गिरती हैं,
तो कैसी लगती हैं,
जब बरसते पानी से
बाल तर हो जाते हैं,
तो कैसा लगता है.
कैसा लगता है,
जब कपड़े गीले होकर
बदन से चिपक जाते हैं,
जब बरसती बूँदें कहती हैं,
'बंद करो अपनी बातचीत,
अब मेरी सुनो.'
आओ, निकल चलें बारिश में,
निमोनिया होता है,
तो हो जाय,
सूखे-सूखे जीने से
भीगकर मर जाना अच्छा है.