मन पर लगाम कस के,
कई दिनों की कोशिशों से
उस लड़की ने जुटाए हैं
एक कप कॉफ़ी के पैसे.
टॉफ़ी खाई है कई बार उसने,
कोक भी पीया है एक बार,
बस कॉफ़ी ही नहीं चखी है-
सुन्दर से कप में परोसी,
गर्मागर्म झागवाली कॉफ़ी.
बहुत ख़ुश है आज वह लड़की,
आख़िर वह भी चखेगी कॉफ़ी,
देर तक महसूस करेगी उसका स्वाद,
घूँट-घूँट उतारेगी गले से नीचे,
आज महसूस करेगी वह
कि अमृत का स्वाद कैसा होता है.
छोटी-सी गिलहरी
दौड़ती-भागती रहती है
ऊंचे पेड़ की शाखों पर,
पेड़ को गुदगुदी होती है,
पर कुछ नहीं कहता वह,
उसके पत्ते हिलते हैं,
वह बस हँसता रहता है.
बेघर होती हैं सड़कें,
बारिश में भीगती हैं,
ठण्ड में ठिठुरती हैं,
धूप में तपती हैं सड़कें.
जूतों तले दबती हैं,
टायरों तले कुचलती हैं,
थूक-पीक झेलती हैं,
ख़ामोश रहती हैं सड़कें.
मरी-सी लेटी रहती हैं,
जीवन चलता है उनपर,
ख़ुद तो नहीं चलतीं,
दूसरों को चलाती हैं सड़कें.
जब भी कभी सांस आती है,
ध्रुवतारा खोजती हैं सड़कें,
सूनी आँखों से ऊपर देखती हैं,
मंज़िल तलाशती हैं सड़कें.
घर की बालकनी से मैं
सूरज को ताकता हूँ,
सूरज मुस्कराता है,
पूछ्ता है,'उठ गए ?
मैं भी उठ गया.'
लाल गुलाल सी किरणें
मेरे चेहरे पर
मल देता है सूरज.
मैं कमरे में लौटता हूँ,
आईने में देखता हूँ,
चेहरा तो साफ़ है,
पर महसूस करता हूँ
कि रंग दिया है सूरज ने
कहीं गहरे तक मुझे.