(कुछ दिनों पहले एक दोस्त के 18-वर्षीय इकलौते बेटे की सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी.
उसी का थोड़ा-सा दर्द इन कविताओं में सिमट आया है.)
बहुत दिन हुए,
वह दिखा ही नहीं,
जब गया था,
तब कहाँ पता था
कि वह दिखेगा ही नहीं?
***
वैसे तो मैं जानता हूँ
कि मौत के बाद
कोई दिखता नहीं है,
पर तुम गए,तो मैंने जाना
कि नहीं दिखना क्या होता है.
***
काश ऐसा होता
कि मौत के बाद भी
कोई होली-दिवाली आ जाता,
कुछ रंग भर जाता,
थोड़ी रौशनी कर जाता.
***
मौत,
हमने सोचा था
कि हम हमेशा साथ रहेंगे,
क्या बिगड़ जाता जो तुम
मुझसे थोड़ा पहले मिल लेती,
उससे थोड़ा बाद में?
***
मौत,
तुम कभी तो आओगी,
कभी तो मिलोगी मुझसे,
मुझे भी मिलना है तुमसे,
बहुत-सी शिकायतें जमा हैं.
***
एक कच्चा फल टूटा,
मैं जानता था
कि हवाओं का दोष नहीं था,
न ही पत्थर चलाया था किसी ने,
पर उसका गिरना मुझे
उतना बुरा नहीं लगा,
जितना अपना नहीं गिरना.
***
मैं सहन कर लेता,
तुमसे कभी न मिलना,
पर कैसे सह सकूंगा
तुमसे इस कारण नहीं मिलना
कि तुम हो ही नहीं?