बुधवार, 28 जून 2023

७२१. उसकी मौत पर

 


(कुछ दिनों पहले एक दोस्त के 18-वर्षीय इकलौते बेटे की सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी.

उसी का थोड़ा-सा दर्द इन कविताओं में सिमट आया है.)





बहुत दिन हुए,

वह दिखा ही नहीं, 

जब गया था,

तब कहाँ पता था 

कि वह दिखेगा ही नहीं?

***

वैसे तो मैं जानता हूँ  

कि मौत के बाद 

कोई दिखता नहीं है,

पर तुम गए,तो मैंने जाना 

कि नहीं दिखना क्या होता है. 

***

काश ऐसा होता 

कि मौत के बाद भी 

कोई होली-दिवाली आ जाता,

कुछ रंग भर जाता,

थोड़ी रौशनी कर जाता. 

***

मौत,

हमने सोचा था 

कि हम हमेशा साथ रहेंगे,

क्या बिगड़ जाता जो तुम  

मुझसे थोड़ा पहले मिल लेती,

उससे थोड़ा बाद में?

***

मौत,

तुम कभी तो आओगी,

कभी तो मिलोगी मुझसे,

मुझे भी मिलना है तुमसे,

बहुत-सी शिकायतें जमा हैं. 

***

एक कच्चा फल टूटा,

मैं जानता था 

कि हवाओं का दोष नहीं था,

न ही पत्थर चलाया था किसी ने,

पर उसका गिरना मुझे 

उतना बुरा नहीं लगा,

जितना अपना नहीं गिरना. 

***

मैं सहन कर लेता,

तुमसे कभी न मिलना,

पर कैसे सह सकूंगा 

तुमसे इस कारण नहीं मिलना 

कि तुम हो ही नहीं?


गुरुवार, 22 जून 2023

७२०. सीमा

 


बहुत सोच-समझ कर,

बहुत ध्यान से 

मैंने तुम पर कविता लिखी,

जैसे कोई सामने बिठाकर 

किसी का चित्र बनाये. 


मैं बुरा कवि नहीं हूँ,

पर मैंने जो कविता लिखी,

उस में तुम पूरी नहीं आ पाई. 


मैं तुम्हारे बारे में कभी 

सही तरह बता ही नहीं पाता,

कभी कुछ, तो कभी कुछ 

रह ही जाता है. 


तुम्हारा होना प्रमाण है 

कि शब्दों की भी सीमा है. 

रविवार, 18 जून 2023

७१९. नदी

 


बहुत विशाल होती है नदी,

बहुत गहरी,

पर कोई भी उतर जाता है उसमें,

नहीं पहचानती वह 

अपनी ताक़त. 

**

नदी,

तुम ऊपर से शांत हो,

पर नीचे तेज़ है तुम्हारी धार,

कितना अच्छा होता,

जो इसका उल्टा हुआ होता. 

**

नदी,

तुम शांत हो, तो रहो,

पर कुछ ऐसा करो

कि जो तुम्हें देखे

समझ ही न पाए, 

तुम्हें छेड़ा जा सकता है या नहीं. 

**

नदी,

तुम चुपचाप बहना चाहो, बहो,

पर कभी-कभी तुम में 

उफान भी आना चाहिए,

बहुत ज़रूरी है ऐसा होना  

तुम्हारी अस्मिता के लिए. 

मंगलवार, 13 जून 2023

७१८. तुम यूं घुल गई



तुम यूं घुल गई मुझमें

जैसे कविता में घुल जाते हैं शब्द,

कभी-कभी मुझे लगता है 

कि कुछ कमी थी शब्दों में,

पर कैसे हटाऊँ?

किसी एक को भी हटाऊँ,

तो बिखर जाएगी पूरी कविता. 

**

तुम यूं घुल गई मुझमें 

जैसे चांदनी घुल जाती है 

झील के पानी में,

बड़ी अच्छी रही रात,

पर सुबह देखा,

तो चाँद ग़ायब था,

अच्छा नहीं लगा देखकर,

तुम घुली रहा करो मुझमें,

चाहे सुबह हो या शाम,

दिन हो या रात.


गुरुवार, 8 जून 2023

७१७. कविताओं से बाहर तुम

 




मैंने तुम्हें कविताओं में सोचा,

कविताओं में लिखा,

कविताओं में पढ़ा,

कविताओं में सुना,

मैंने तुम्हें कविताओं में देखा,

कविताओं में छुआ. 


मैं रोज़ तुम्हारे साथ रहा,

पर तुम्हें जाना कविताओं में,

मैंने कविताओं से बाहर 

कभी नहीं सुनीं तुम्हारी साँसें,

तुम्हारी धड़कनें,

कविताओं से बाहर 

कभी महसूस नहीं की

तुम्हारी ख़ुशबू.   



शनिवार, 3 जून 2023

दोस्तों,

इस साल अप्रैल में मेरी कविताओं की ई-बुक ‘इंद्रधनुष’ प्रकाशित हुई थी, जो अमेज़न पर उपलब्ध है. उम्मीद है, इस महीने या अगले महीने तक मेरी हास्य-व्यंग्य की ई-बुक ‘मल्टीप्लेक्स में पॉपकॉर्न’ प्रकाशित हो जाएगी. आपको नाम और कवर कैसा लगा, बताइएगा.



गुरुवार, 1 जून 2023

७१६. हम जल्दी बड़े हो रहे हैं

 


उम्र कम हो,

तो मांगें भी छोटी होती हैं,

पूरी न हों,

तो थोड़ी देर का रोना-धोना,

फिर सब कुछ भूल जाना. 


उम्र बढ़ती है,

तो बड़ी होने लगती हैं मांगें,

पूरी न हों,

तो दुःख से बेहाल हो जाना,

आसान नहीं रहता भूल पाना. 


पता नहीं क्या,

पर कुछ तो हुआ है 

कि बहुत जल्दी बड़े हो रहे हैं 

हम सब इन दिनों.