कविताएँ
मंगलवार, 26 नवंबर 2024
790. परदेसी से
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आम का वह पौधा, जो तुमने कभी रोपा था, अब पेड़ बन गया है, महकते बौर लगते हैं उसमें, खट्टी कैरियाँ और मीठे फल भी। उसके हरे-हरे पत्ते हवाओं म...
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शनिवार, 16 नवंबर 2024
789. शब्द
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शब्दों के भी पंख होते हैं, वे नहीं रहते सिर्फ़ वहां, जहां उन्हें लिखा जाता है। कभी वे आसमान में चले जाते हैं, दिखते हैं, पर हाथ नहीं आते,...
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गुरुवार, 7 नवंबर 2024
788. हँसती हुई लड़कियाँ
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मुझे अच्छी लगती हैं हँसती हुई लड़कियाँ, पर इन दिनों वे थोड़ी सहमी-सहमी सी हैं। बाहर निकलने से इन दिनों कतराती हैं लड़कियाँ, देर हो जाय लौटन...
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शनिवार, 2 नवंबर 2024
790. काला रंग
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मुझे पसंद है काला रंग, मैं पहनता हूँ काले कपड़े, खरीदता हूँ काली चीज़ें, घर की दीवारों को मैंने रंगवाया है काले रंग से। समझ नहीं पाता कोई ...
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सोमवार, 28 अक्तूबर 2024
789. इस बार की दिवाली
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पिछली दिवाली में जो थोड़े-बहुत फ़ासले दिलों के बीच हुए थे, इस दिवाली में आओ उन्हें दूर भगाएँ, एक क़दम तुम बढ़ाओ, एक क़दम हम बढ़ाएँ। बहुत कर ल...
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