कविताएँ

शुक्रवार, 6 जून 2025

808.चश्मा

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  मैं बड़ा हुआ, तो मेरे पाँवों में आने लगे  पिता के जूते, मेरी आँखों पर चढ़ गया  पावरवाला चश्मा, पर पिता का चश्मा  मुझे फ़िट नहीं बैठता था  दोन...
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गुरुवार, 29 मई 2025

807. माँ

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  जब तुम नहीं रहोगी, तो कौन बंद कराएगा टी.वी. ताकि बहराते कान सुन सकें  ट्रेन की सीटी की आवाज़. खिड़की के पर्दे से  कौन झांक-झांक कर देखेगा ...
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गुरुवार, 22 मई 2025

806. ट्रेन

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  दौड़ती चली जा रही है ट्रेन, घुप्प अंधेरा है बाहर, बेफ़िक्र सो रहे हैं यात्री, कुछ, जो अभी-अभी चढ़े हैं, सामान लगा रहे हैं अपना, कुछ, जो उतर...
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रविवार, 11 मई 2025

805. मां

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  इन दिनों मैं बहुत ढूंढ़ता हूँ मां को, हर किसी में खोजता हूँ उसे, कभी ढूंढ़ता हूँ बहन में, कभी बेटी में, कभी पत्नी में।  दूसरों की मांओं मे...
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बुधवार, 30 अप्रैल 2025

804. पाक-कला और प्रेम

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  नहीं आता मुझे खाना बनाना, तुमने सिखाया ही नहीं,  पर आज मन है कि मैं बनाऊँ, तुम मुझे बनाते हुए देखो।  पूछूंगा नहीं कि क्या मसाले डालने हैं,...
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