कविताएँ

बुधवार, 10 दिसंबर 2025

827. वह थी

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  वह जब थी, तो पता ही नहीं था  कि वह थी।  वह बताती भी थी, तो कोई समझता नहीं था  कि वह थी।  अब जब वह नहीं है, तो पता चला है  कि वह थी, पर उसे...
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मंगलवार, 2 दिसंबर 2025

826. एक ग़ज़ल

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  क़लम नहीं रही अब भरोसे के लायक़, बीच ग़ज़ल स्याही जम सी गई है। मै भी नहीं पहले सा, वह भी नहीं पहले सी, दूरियाँ मगर कुछ कम सी गई हैं। मिली थी म...
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गुरुवार, 27 नवंबर 2025

825.रिश्तों की वारंटी

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  नया रिश्ता ऑर्डर करो, तो ध्यान से करना, अच्छी तरह ठोक-बजाकर सोच-समझकर करना।   मार्केटिंग से सावधान रहना, पैकिंग पर मत जाना, थोड़ा भी शक़ हो,...
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मंगलवार, 4 नवंबर 2025

824. स्कूटर भाई

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  स्कूटर भाई, अब चलते हैं, किसी कबाड़ी के यहां रहते है, तुम भी पुराने, मैं भी पुराना, बीत चुका है हमारा ज़माना।  यूं उदास मत होना, जो नए हैं...
7 टिप्‍पणियां:
गुरुवार, 23 अक्टूबर 2025

823. दिवाली के बाद

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1. दिवाली के बाद सड़कों पर यूं बिखरा था पटाखों का मलबा, जैसे काम निकल जाने के बाद सही चेहरा दिखे किसी का। 2. पटाखों का मलबा देखा, तो मैंने सो...
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