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मंगलवार, 26 नवंबर 2024

790. परदेसी से

 


आम का वह पौधा,

जो तुमने कभी रोपा था,

अब पेड़ बन गया है,

महकते बौर लगते हैं उसमें,

खट्टी कैरियाँ और मीठे फल भी। 


उसके हरे-हरे पत्ते 

हवाओं में मचलते हैं,

उसकी टहनियों पर बैठकर 

पंछी चहचहाते हैं। 


तुम भी चले आओ इस साल, 

देख लो अपना लगाया पौधा,

नहीं बनाना घोंसला, तो न सही,

थोड़ी देर शाख पर बैठ जाना,

फिर चाहो, तो उड़ जाना। 



शनिवार, 16 नवंबर 2024

789. शब्द

 


शब्दों के भी पंख होते हैं, 

वे नहीं रहते सिर्फ़ वहां,

जहां उन्हें लिखा जाता है। 


कभी वे आसमान में चले जाते हैं,

दिखते हैं, पर हाथ नहीं आते,

कभी वे अंदर पैठ जाते हैं,

साफ़-साफ़ दिखाई पड़ते हैं। 


शब्द काग़ज़ पर रहते हैं,

फिर भी उड़ जाते हैं, 

वे पंछी नहीं 

कि उड़ने के लिए 

घोंसला छोड़ना पड़े उन्हें।


बड़े भ्रमित करते हैं शब्द,

जितने बाहर होते हैं,

उतने ही अंदर भी,

जितने सामने होते हैं,

उतने ही ओझल भी, 

कभी नहीं दिखता काग़ज़ पर 

शब्दों का असली रूप। 


गुरुवार, 7 नवंबर 2024

788. हँसती हुई लड़कियाँ

 




मुझे अच्छी लगती हैं 

हँसती हुई लड़कियाँ,

पर इन दिनों वे 

थोड़ी सहमी-सहमी सी हैं।


बाहर निकलने से इन दिनों

कतराती हैं लड़कियाँ,

देर हो जाय लौटने में 

तो बढ़ा देती हैं  

अपने क़दमों की रफ़्तार।


न जाने कब कौन

टूट पड़े उन पर,

बंद घरों में भी 

सहमी-सी रहती हैं लड़कियाँ। 


सपनों में देखती हैं वे

मुखौटे लगाए चेहरे,

चिथड़े-चिथड़े कपड़े,

मोमबत्तियाँ हाथों में लिए 

जुलूस में शामिल लोग। 


मुझे अच्छी लगती हैं 

हँसती हुई लड़कियाँ,

पर अरसे से नहीं देखी मैंने  

हँसती हुई लड़की,

आपने देखी हो, तो बताइएगा,

मैं भी मिलना चाहता हूँ

ऐसी दुस्साहसी लड़की से। 



शनिवार, 2 नवंबर 2024

790. काला रंग

 


मुझे पसंद है काला रंग,

मैं पहनता हूँ काले कपड़े,

खरीदता हूँ काली चीज़ें,

घर की दीवारों को मैंने 

रंगवाया है काले रंग से। 


समझ नहीं पाता कोई 

काले रंग से मेरा लगाव,

पर मुझे लगता है

कि इसमें ईमानदारी बहुत है। 


काला ही तो वह रंग है,

जो हमारे भीतर है,

बाहर भी हमें 

वैसा ही दिखना चाहिए,

जैसे हम अंदर हैं। 



सोमवार, 28 अक्तूबर 2024

789. इस बार की दिवाली

 



पिछली दिवाली में 

जो थोड़े-बहुत फ़ासले

दिलों के बीच हुए थे,

इस दिवाली में आओ 

उन्हें दूर भगाएँ,

एक क़दम तुम बढ़ाओ,

एक क़दम हम बढ़ाएँ। 


बहुत कर ली हमने 

घरों की सफ़ाई,

अपने अंदर का 

कूड़ा हटाएँ,

थोड़ा दिलों को चमकाएँ। 


तुम अपनी बर्फ़ी

हमें खिलाओ,

हम अपनी नमकीन 

तुम्हें खिलाएँ,

थोड़े दिये तुम जलाओ,

थोड़े हम जलाएँ,

दो दिये ही सही,

साथ-साथ जलाएँ। 



छोटी-सी ज़िंदगी में 

इतना क्या रूठना,

इतना क्या गुस्सा 

इतनी क्या ज़िद,

अपनी बालकनी से 

तुम मुस्कुराओ,

अपनी छत से 

हम मुस्कुराएँ।



अंधेरा न रहे कहीं,

हर कोना जगमगाए,

इस बार दिवाली 

कुछ इस तरह मनाएँ।