top hindi blogs

सोमवार, 29 सितंबर 2025

820. ज़ुबिन की याद में

 


पिछले दिनों असम के मशहूर गायक ज़ुबिन गर्ग की 52 साल की उम्र में एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। उनकी अंतिम यात्रा में गुवाहाटी में एक जन-सैलाब देखा गया। लिम्का बुक ऑफ रेकॉर्ड्स में इसे किसी अंतिम यात्रा में इतिहास का चौथा सबसे बड़ा जन-समागम बताया गया। असम के दिल की धड़कन पर तीन छोटी-छोटी कविताएं। 

***

सुबह सूरज कुछ अनमना-सा था,

कुछ थका-थका, कुछ बुझा-बुझा,

लगता है, उसने भी गुज़ारी थी 

कल की रात करवटें बदलकर। 

***

पंद्रह लाख ज़ुबिन उतरे 

उसकी विदाई में सड़कों पर,

पता ही नहीं चला 

कि कौन सा ज़ुबिन ज़िंदा था

और कौन सा नहीं था। 

***

फिर कभी आओ,

तो ज़ुबिन बनकर आना,

कहीं और नहीं, 

यहीं आसाम में आना। 

एक हम ही हैं,

जो समझेंगे तुम्हें,

एक हम ही हैं,

जिन्हें पता होगा 

तुम्हारा मूल्य। 


बुधवार, 27 अगस्त 2025

819.पासवर्ड

 


मेरी हर फ़ाइल का अलग पासवर्ड है,
हर पासवर्ड मुश्किल है,
बनाते वक़्त सोचा नहीं था
कि ज़रूरी होगा उन्हें याद रखना।
अब मेरी फ़ाइलें महफ़ूज़ हैं,
किसी का डर नहीं है उन्हें,
कोई और तो क्या,
मैं भी नहीं खोल सकता उन्हें।
धीरे-धीरे मैंने जाना है
कि छिपाना ज़रूरी हो सकता है,
पर सारी फ़ाइलें नहीं,
छिपाने की कोशिश में भी
संतुलन ज़रूरी है।
उन फ़ाइलों के पासवर्ड हटाइए,
जिन्हें छिपाना ज़रूरी नहीं है
और जिन्हें छिपाना ज़रूरी है,
उनके पासवर्ड भी ऐसे हों
कि कम-से-कम आप खोल सकें
उन फ़ाइलों को आसानी से।

बुधवार, 13 अगस्त 2025

818. ईश्वर से

 


ईश्वर, 

मुझे वह सब मत देना,

जो मैं मांग रहा हूँ, 

दे दोगे, तो और माँगूँगा, 

हो सकता है कि अगर तुम 

मांगा हुआ सब कुछ दे दो,

तो मुझे कुछ ऐसा मिल जाए,

जो मेरे लिए बेकार,

किसी और के लिए ज़रूरी हो। 


ईश्वर,

अपने विवेक का इस्तेमाल करना,

अपनी स्तुति पर मत रीझना,

प्रार्थना से मत पिघलना, 

ज़रूरत से थोड़ा कम देना,

बस उतना ही 

कि मैं छीन न सकूँ 

किसी और का हक़,

बना रहूँ मनुष्य। 



बुधवार, 6 अगस्त 2025

 प्रिय साथियों, मेरी 51 प्रेम कविताओं का संकलन 'ओस की बूंद' अब अमेज़ॅन पर प्री-ऑर्डर के लिए उपलब्ध है। 10 अगस्त से यह पढ़ने के लिए भी उपलब्ध होगा।मूल्य 49 रुपए है। कृपया इस संकलन को भी अपना प्यार दें। आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतज़ार रहेगा। लिंक दे रहा हूँ। https://amzn.in/d/0crseef  धन्यवाद। ओंकार केडिया



शुक्रवार, 25 जुलाई 2025

817. पासवर्ड और कविता




मेरा पासवर्ड मेरी कविता की तरह है, 

मैं नहीं जानता उसका अर्थ, 

न ही वह मुझे याद रहता है। 


मेरे पासवर्ड में न लय है, 

न कोई मीटर,

मैं तो यह भी नहीं जानता 

कि उसकी भाषा क्या है,

भाषा है भी या नहीं।


फिर भी मैं जानता हूँ 

कि मेरे पासवर्ड में 

कुछ खोज ही लेंगे लोग, 

जैसे मेरे लिखे में 

कविता ढूँढ़ लेते हैं 

मेरे पाठक।