पिता,
मैं रोज़ देखता हूँ
सामनेवाली दीवार पर तुम्हें,
अच्छे लगते हो तुम
चुपचाप मुस्कुराते हुए.
पिता,
सालों हो गए तुम्हें
यूँ ही मुस्कुराते हुए,
कभी तो गुस्सा दिखाओ,
कभी तो तस्वीर से निकलो,
कभी तो डाँटो-फटकारो.
पिता,
मैं रोज़ देखता हूँ
सामनेवाली दीवार पर तुम्हें,
अच्छे लगते हो तुम
चुपचाप मुस्कुराते हुए.
पिता,
सालों हो गए तुम्हें
यूँ ही मुस्कुराते हुए,
कभी तो गुस्सा दिखाओ,
कभी तो तस्वीर से निकलो,
कभी तो डाँटो-फटकारो.
आओ चलें,
थोड़ी देर बैठें
उस पेड़ पर,
जिसका साथ छोड़ दिया है
पत्तों ने,फूलों ने,
जिसकी जड़ें अब
सूखने लगी हैं,
जिसके पास देने को
कुछ भी नहीं बचा,
छाया भी नहीं.
आओ,बैठें
किसी सूखी डाली पर,
जीवंत कर दें ठूँठ को,
महसूस करें
कि इस डाली से उस डाली तक
फुदकने में अब
कोई बाधा नहीं है,
पत्तों की भी नहीं.
आज न मैं मंत्री बना हूँ,
न विधायक,
न सांसद,
न ही मुझे मिला है
कोई और अहम पद.
न मैं रिटायर हुआ हूँ,
न मेरी शोकसभा है,
फिर क्यों हो रही है आज
मेरी इतनी तारीफ़?
हैरान हूँ मैं,
बिना बात के तो कभी
होती नहीं तारीफ़,
ऐसा क्या कर दिया मैंने
जिसकी ख़ुद मुझे ख़बर नहीं?
आओ, दौड़कर आओ,
जल्दी से आकर
क़तार में खड़े हो जाओ,
लम्बी क़तार है,
कुछ अच्छा ही बँट रहा होगा,
सोचने में समय मत गंवाओ,
बस शामिल हो जाओ.
जगह न मिले,
तो हटा दो किसी को,
धकेल दो, गिरा दो,
बना लो अपनी जगह,
मत सोचो कि
सही क्या है,ग़लत क्या है.
तुम्हारा लक्ष्य बस एक ही है-
क़तार में शामिल होना
और ऐसी जगह खड़े होना
कि जो कुछ भी बँट रहा है,
तुम उससे वंचित न रह जाओ.
मैं कोरोना नहीं हूँ
कि तुम मास्क लगा लो
और दूर कर दो मुझे,
मास्क लगाकर तो तुमसे
इन्कार भी नहीं होता.
**
यूँ परेशान मत होओ,
हाथ-पाँव मत मारो,
कोई असर नहीं होगा
रेमडेसिविर,प्लाज़्मा का,
मैं कोरोना नहीं हूँ,
एक बार घुस गया,
तो निकलता नहीं हूँ.
**
वैसे तो हज़ारों हैं यहाँ,
पर तुम नहीं, तो कोई नहीं,
मैं कोरोना नहीं हूँ
कि किसी का भी हो जाऊँ।
धीरे-धीरे कम हो रहा है
आपदा का पहाड़,
चार से तीन लाख,
तीन से दो,
दो से एक,
अब एक से कम.
साफ़ होने लगा है कुछ-कुछ
पहाड़ के पीछे का आसमान,
उड़ते दिख रहे हैं पंछी,
बन रहा है इंद्रधनुष.
ग़ायब हो जाएगा जल्दी ही
यह आपदा का पहाड़,
कितना ही ताक़तवर क्यों न हो,
ख़त्म तो होना ही है इसे.
हम कोशिश करेंगे
कि ऐसा पहाड़
फिर खड़ा न हो,
हो भी, तो उसकी ऊंचाई
एक पहाड़ी से ज़्यादा न हो.
मैंने पिता को कभी रोते नहीं देखा,
किसी अपने की मौत पर भी नहीं,
ग़म का पहाड़ टूटने पर भी नहीं,
बस उनकी आवाज़ भर्रा जाती थी,
या दिख जाती थी थोड़ी-सी नमी
उनकी पलकों के ठीक पीछे.
रात को मेरी नींद उचटती थी,
तो एक सिसकी सुनाई पड़ती थी,
दबी-कुचली, ज़िद्दी-सी सिसकी,
पिता थोड़े चिड़चिड़े हो गए थे,
बूढ़े होने की जल्दी में लगते थे.
काश कि वे खुलकर रो लेते,
काश कि मैं उनसे कह पाता
कि पिता भी कभी-कभी रो सकते हैं.
गुलमोहर के पेड़ पर खिले
आख़िरी फूल,
तुम्हारी जिजीविषा को सलाम।
गिरते रहे एक-एक कर
तुम्हारे साथ खिले फूल,
पर तुम डटे रहे,
लड़ते रहे तूफ़ानों से,
भिड़ते रहे बारिशों से,
पर अब तुम्हें जाना होगा,
मिलना होगा मिट्टी में.
जिन पत्तों से तुम घिरे हो,
जिस डाल पर खिले हो,
जिस पेड़ से जुड़े हो,
सब होंगे एक दिन धराशाई,
कोई पहले,कोई बाद में.
यहाँ तक कि तुम्हारे पेड़ की जड़ें,
जो घुस गई हैं ज़मीन में गहरे तक,
एक दिन सूख जाएंगी,
अंत निश्चित है उनका भी.
कोई-कोई रात
बहुत अंधेरी होती है,
पूनम का चाँद खिला हो,
तो भी ऐसा हो सकता है.
सब दिखता है आँखों से,
पर नींद जैसे रूठकर
कोसों दूर चली जाती है,
दिमाग़ जैसे सुन्न हो जाता है.
ऐसे में ख़ुद को थामे रखिए,
हाथों में हाथ डाले रहिए,
इंतज़ार कीजिए,
यह वक़्त भी गुज़र जाएगा.
कोई रात कितनी ही डरावनी क्यों न हो,
सुबह को आने से नहीं रोक सकती.
अँधेरी रात,
बियाबान जंगल,
बेबस,अकेला मैं.
बढ़ी चली आ रही हैं
मेरी ओर धीरे-धीरे
दो चमकती आँखें,
मौत के डर से
पसीना-पसीना
हुआ जा रहा हूँ मैं.
अरे,वहशी जानवर नहीं,
यह तो कोई मददगार है,
जो पास आ पहुँचा है मेरे
हाथों में दिए लिए.
अब कोई डर नहीं,
पार कर लूँगा मैं
यह घनघोर जंगल,
चला जाऊंगा
अँधेरे से बहुत दूर.
कल्पनाओं का जंगल,
आशंकाओं का अँधेरा,
वहम का जानवर -
यह सारा ताना-बाना
जिसने बुना है,
वह मेरा होकर भी
मेरा दुश्मन है.
मैं सौ साल पहले की
वही विधवा बहू हूँ,
जो कोठरी में बंद रहती थी,
खाने के नाम पर जिसे
सूखी रोटियाँ मिलती थीं
और दिन-भर के काम के बदले
दुनिया-भर की झिड़कियाँ।
मैं सौ साल पहले की
वही विधवा बहू हूँ,
जो सिर्फ़ इसलिए पिट जाती थी
कि उसने किसी को देखकर
थोड़ा-सा मुस्करा दिया था
या तेज़ हवा में सरक गया था
उसका आँचल ज़रा-सा.
मैंने फिर से जन्म लिया है
ताकि बदला ले सकूँ उनसे,
पर जब खोजने निकलती हूँ,
तो कुछ पता ही नहीं चलता,
हर क़दम पर मुझे
ऐसे लोग मिलते हैं,
जिन्हें देखकर लगता है
कि यही हैं वे,
जिन्होंने सैकड़ों साल पहले
मुझे गर्म सलाख़ों से दागा था.