मैं घास हूँ,
मुझे बोना नहीं होता,
न ही गड्ढा खोदकर
मुझे रोपना होता है,
न मुझे खाद चाहिए,
न कोई ख़ास देखभाल.
मैं छोटी सही,
गहरी न सही मेरी जड़ें,
पर मैं तिरस्कृत,उपेक्षित,
कहीं भी उग सकती हूँ,
कठोर चट्टानों पर भी.
मुझे कम मत समझना,
मैं जो कर सकती हूँ,
बरगद और पीपल
कभी नहीं कर सकते.
इच्छाएँ घुमावदार जंगल जैसी हैं,
पहले थोड़ी सी दिखती हैं,
जब वहां पहुँच जाओ,
तो थोड़ी और दिखने लगती हैं,
उनके आगे फिर थोड़ी और.
यह सिलसिला चलता ही रहता है,
इच्छाओं का जंगल कभी ख़त्म नहीं होता.
उस घर में एक लड़की थी,
सुन्दर-सी,मासूम-सी,
रह-रह कर खिलखिलानेवाली,
उसकी हंसी मोहल्ले में गूंजती थी.
बड़े सलीके से सजती थी वह,
रंगों का अच्छा सेंस था उसको,
दिल नहीं दुखाया उसने किसी का,
सबकी जान थी वह लड़की.
आज उस घर में धुआं भरा है,
लाशें बिछी हैं, खून बिखरा है,
लड़की के कपड़े फैले हैं घर में,
कहीं सलवार,कहीं कुरता,
कहीं कुछ,कहीं कुछ,
कहीं चूड़ी,कहीं बिंदी,
पर वह लड़की कहीं नहीं है.
सब कहते हैं,
मर गई है वह लड़की,
बस हो सकता है,
उसका शरीर ज़िन्दा हो.
अपनी बेटी के लिए
एक गुड़िया ख़रीदी मैंने,
अच्छी लगती थी वह मुझे,
कभी मुंह नहीं खोला उसने,
महीनों कोने में रख दो,
तो भी चुप रहती थी वह.
कभी किसी से मिलने की
ज़िद नहीं की उसने,
न प्यार किया,न गुस्सा,
न रोई, न चिल्लाई,
कभी कुछ नहीं माँगा,
कभी विरोध नहीं किया,
हमेशा गुड़िया ही रही वह.
अब मैंने बेटी की शादी कर दी है,
विदा कर दिया है उसे,
पर गुड़िया को अपने साथ रखा है,
मुझे बेटी से ज़्यादा गुड़िया से प्यार है.