जब मेरी डोर किसी के हाथ में थी,
मैं छटपटाती थी, मुक्ति के लिए.
मैं दूर बादलों में उडूं,
हवाओं के साथ दौडूँ,
सूरज को ज़रा क़रीब से देखूं -
इतना मेरे लिए काफ़ी नहीं था.
मैं सोचती थी,जो मुझे उड़ाता है,
मुझे वापस क्यों खींच लेता है,
मेरा उड़ना, मेरा झूमना,
किसी और की मर्ज़ी से क्यों होता है.
डोर से कटकर तो मैं
पूरी तरह हवाओं के वश में थी,
उड़-उड़ कर जब अधमरी हो गई,
तो किसी पेड़ की टहनी में फँस गई,
जहाँ मैं धीरे-धीरे फट रही हूँ,
तिल-तिलकर गल रही हूँ.
अगर टहनी में न फंसती,
तो भी मुक्त कहाँ होती,
मुझे दौड़ा-दौड़ाकर
कोई-न-कोई आख़िर लूट ही लेता.
अब मैं समझ गई हूँ
कि मेरे लिए मुक्ति संभव नहीं,
बस अलग-अलग स्थितियों में
मेरे शोषण के तरीक़े अलग-अलग हैं.
मैं छटपटाती थी, मुक्ति के लिए.
मैं दूर बादलों में उडूं,
हवाओं के साथ दौडूँ,
सूरज को ज़रा क़रीब से देखूं -
इतना मेरे लिए काफ़ी नहीं था.
मैं सोचती थी,जो मुझे उड़ाता है,
मुझे वापस क्यों खींच लेता है,
मेरा उड़ना, मेरा झूमना,
किसी और की मर्ज़ी से क्यों होता है.
डोर से कटकर तो मैं
पूरी तरह हवाओं के वश में थी,
उड़-उड़ कर जब अधमरी हो गई,
तो किसी पेड़ की टहनी में फँस गई,
जहाँ मैं धीरे-धीरे फट रही हूँ,
तिल-तिलकर गल रही हूँ.
अगर टहनी में न फंसती,
तो भी मुक्त कहाँ होती,
मुझे दौड़ा-दौड़ाकर
कोई-न-कोई आख़िर लूट ही लेता.
अब मैं समझ गई हूँ
कि मेरे लिए मुक्ति संभव नहीं,
बस अलग-अलग स्थितियों में
मेरे शोषण के तरीक़े अलग-अलग हैं.