शुक्रवार, 24 अप्रैल 2015

१६६. पतंग

जब मेरी डोर किसी के हाथ में थी,
मैं छटपटाती थी, मुक्ति के लिए.

मैं दूर बादलों में उडूं,
हवाओं के साथ दौडूँ,
सूरज को ज़रा क़रीब से देखूं -
इतना मेरे लिए काफ़ी नहीं था.

मैं सोचती थी,जो मुझे उड़ाता है,
मुझे वापस क्यों खींच लेता है,
मेरा उड़ना, मेरा झूमना,
किसी और की मर्ज़ी से क्यों होता है.

डोर से कटकर तो मैं 
पूरी तरह हवाओं के वश में थी,
उड़-उड़ कर जब अधमरी हो गई,
तो किसी पेड़ की टहनी में फँस गई,
जहाँ मैं धीरे-धीरे फट रही हूँ,
तिल-तिलकर गल रही हूँ.

अगर टहनी में न फंसती,
तो भी मुक्त कहाँ होती,
मुझे दौड़ा-दौड़ाकर 
कोई-न-कोई आख़िर लूट ही लेता.

अब मैं समझ गई हूँ 
कि मेरे लिए मुक्ति संभव नहीं,
बस अलग-अलग स्थितियों में 
मेरे शोषण के तरीक़े अलग-अलग हैं. 

शुक्रवार, 17 अप्रैल 2015

१६५.शिव से

शिव, वह गंगा,
जो कभी तुम्हारी जटाओं से निकली थी,
अब मैली हो गई है,
बल्कि हमने कर दी है,
अब चाहकर भी हमसे 
साफ़ नहीं हो रही,
शायद हमारी इच्छा-शक्ति
या सामर्थ्य में कोई कमी है.

शिव, तुमसे विनती है,
तुम अपनी गंगा फिर से 
अपनी जटाओं में समेट लो.

जिस तरह तुमने कभी 
समुद्र-मंथन से निकला विष
अपने उदर में रखा था,
अब गंगा का मैल
अपनी जटाओं में रख लो 
और एक बार फिर हमें दे दो 
वही पहलेवाली निर्मल गंगा.

शनिवार, 11 अप्रैल 2015

१६४. आईना

मत बांधो मेरी तारीफ़ के पुल,
मत पढ़ो मेरी शान में कसीदे,
मत कहो कि मैं कुछ अलग हूँ,
कि मेरा कोई सानी नहीं है.

मैं जानता हूँ कि ये बातें अकसर
किसी मक़सद से कही जाती हैं,
अधिकार और पात्रता के बिना 
कुछ हासिल करने के लिए 
लोग ऐसा कहा करते हैं .

तुम्हें तो पता ही है 
कि तुम जो कह रहे हो, सही नहीं है,
फिर भी तुम कह रहे हो,
क्योंकि तुम्हें लगता है 
कि तुम्हारे झूठ को 
मैं आसानी से सच मान लूँगा.

पर मेरा यकीन मानो,
अपना सच मुझे मालूम है,
मैं आईना देखे बिना कभी 
घर से बाहर नहीं निकलता.


शनिवार, 4 अप्रैल 2015

१६३. कालिख

खूब रोशनी फैलाओ,
अँधेरा दूर भगाओ,
भटकों को राह दिखाओ,
इसी में छिपी है तुम्हारी ख़ुशी,
यही है तुम्हारे होने का मक़सद.

पर जब तुम्हारा तेल चुक जाय,
तुम्हारी बाती जल जाय,
तुम जलने के काबिल न रहो,
तो बची-खुची कालिख देखकर 
हैरान मत होना,
याद रखना कि 
ऐसा ही होता है सबके साथ,
तुम कोई अलग नहीं हो.

कोई भलाई की राह पर निकले 

तो गाँठ बांधकर निकले कि 
जो भी खुद को जलाकर 
रोशनी फैलाता है,
आखिर में उसके हिस्से में 
कालिख ही आती है.