शुक्रवार, 24 जून 2016
शुक्रवार, 17 जून 2016
२१८.रहस्य
देर रात एक हादसा हुआ,
ग़लती से चाँद झील में उतर गया,
मैंने देखा उसे,
सतह पर चुपचाप पड़ा था,
पर ज़िन्दा था, क्योंकि हिल रहा था.
मैं परेशान था कि उसे बचाऊं कैसे,
झील से उसे निकालूँ कैसे,
इसी उधेड़बुन में सुबह हो गई.
बचाने की तैयारी पूरी हुई,
तो देखा कि चाँद ग़ायब था,
किसी ने उसे निकलते नहीं देखा,
गोताखोरों को नहीं मिली उसकी देह,
फिर क्या हुआ उस चाँद का,
जो कल रात झील में उतरा था.
शुक्रवार, 10 जून 2016
शुक्रवार, 3 जून 2016
२१६. पुराने ख़त
वे ख़त जो तुमने कभी लिखे थे,
मैंने पढ़कर रद्दी में डाल दिए थे,
कितना नासमझ था मैं,
ताड़ नहीं पाया प्रगति की रफ़्तार,
समझ नहीं पाया कि धीरे-धीरे
बंद हो जाएंगे हथलिखे ख़त.
जुड़े रहेंगे लोग हर समय,
फ़ोन से, इन्टरनेट से,
देख सकेंगे एक दूसरे को,
कर सकेंगे चैटिंग.
अब तुम्हारे ख़त बंद हो गए हैं,
हम रोज़ बात करते हैं आपस में,
रोज़ देखते हैं एक दूसरे को,
पर सब कुछ यंत्रवत सा है,
अब कहाँ वह इंतज़ार का मज़ा,
अब कहाँ वह फ़ासले की तड़प?
वह तड़प, वह बेकरारी,
मैं कहाँ से खोजूं स्मृतियों में,
मुझे तो याद भी नहीं
कि तुम्हारे ख़त, जो पढ़कर
मैंने रद्दी में डाल दिए थे,
उनमें तुमने लिखा क्या था.
मैंने पढ़कर रद्दी में डाल दिए थे,
कितना नासमझ था मैं,
ताड़ नहीं पाया प्रगति की रफ़्तार,
समझ नहीं पाया कि धीरे-धीरे
बंद हो जाएंगे हथलिखे ख़त.
जुड़े रहेंगे लोग हर समय,
फ़ोन से, इन्टरनेट से,
देख सकेंगे एक दूसरे को,
कर सकेंगे चैटिंग.
अब तुम्हारे ख़त बंद हो गए हैं,
हम रोज़ बात करते हैं आपस में,
रोज़ देखते हैं एक दूसरे को,
पर सब कुछ यंत्रवत सा है,
अब कहाँ वह इंतज़ार का मज़ा,
अब कहाँ वह फ़ासले की तड़प?
वह तड़प, वह बेकरारी,
मैं कहाँ से खोजूं स्मृतियों में,
मुझे तो याद भी नहीं
कि तुम्हारे ख़त, जो पढ़कर
मैंने रद्दी में डाल दिए थे,
उनमें तुमने लिखा क्या था.
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