क्या तुमने कभी रात में
बिस्तर पर लेटे-लेटे
छत पर टपकती
बारिश की बूंदों को सुना है?
कभी धीरे से,
तो कभी ज़ोर से
बारिश की बूँदें
तुम्हें पुकारती हैं,
तुमसे बात करना चाहती हैं,
पर तुम जागकर भी
कुछ सुन नहीं पाते.
कहीं नाराज़ न हो जाएं
ये बारिश की बूँदें,
छोड़ न दें
तुम्हारी छत पर बरसना,
पर क्या फ़र्क पड़ेगा तुम्हें,
तुम्हें तो मालूम ही नहीं
कि छत पर बरसती बूंदों का
संगीत कैसा होता है?
मेरी मानो,
कंक्रीट की छत हटा दो,
टीन की डाल लो,
इतनी ग़रीबी में भी क्या जीना
कि बारिश की आवाज़ भी न सुने.