रविवार, 27 मई 2018

३११. बारिश


क्या तुमने कभी रात में 
बिस्तर पर लेटे-लेटे
छत पर टपकती 
बारिश की बूंदों को सुना है?

कभी धीरे से,
तो कभी ज़ोर से
बारिश की बूँदें 
तुम्हें पुकारती हैं,
तुमसे बात करना चाहती हैं,
पर तुम जागकर भी 
कुछ सुन नहीं पाते.

कहीं नाराज़ न हो जाएं 
ये बारिश की बूँदें,
छोड़ न दें 
तुम्हारी छत पर बरसना,
पर क्या फ़र्क पड़ेगा तुम्हें,
तुम्हें तो मालूम ही नहीं 
कि छत पर बरसती बूंदों का 
संगीत कैसा होता है?

मेरी मानो,
कंक्रीट की छत हटा दो,
टीन की डाल लो,
इतनी ग़रीबी में भी क्या जीना 
कि बारिश की आवाज़ भी न सुने.

शनिवार, 5 मई 2018

310. लोग

बड़े स्वार्थी होते हैं लोग,
अपना काम हो,
तो गधे को भी 
बाप बना लेते हैं,
काम निकल जाने के बाद 
दूध से मक्खी की तरह 
निकाल फेंकते हैं 
किसी को भी.

एहसानफ़रमोश होते हैं लोग,
धोखेबाज़ भी,
ज़रूरत पड़े,
तो किसी की भी पीठ में 
छुरा भोंक सकते हैं.

दोगले होते हैं लोग,
अपने लिए उनके नियम अलग 
और दूसरों के लिए अलग होते हैं,
अंदर से वे वैसे नहीं होते,
जैसे बाहर से दिखते हैं,
वे कहते कुछ और हैं, 
सोचते कुछ और हैं.

मुझे पूरा यक़ीन है
कि जो मैंने कहा है,
बिल्कुल सही है,
क्योंकि मैं ख़ुद भी 
ऐसा ही हूँ.