चिड़िया, बहुत अच्छा लगता है
सुबह-सुबह मेरी खिड़की पर
तुम्हारा ज़ोर-ज़ोर से,
अधिकार से चहचहाना.
मैं आँखें बंद करके
महसूस करता हूँ तुम्हारी आवाज़,
फिर निहारता हूँ तुम्हें
जब तक तुम फुर्र नहीं हो जाती.
चिड़िया, तुम खूब खिड़की पर आया करो,
खूब चहचहाया करो,
यहाँ तक कि रातों को भी,
नींद उड़ा दो मेरी
ताकि चैन आ जाय मुझे.
ईंट-पत्थर के इस जंगल में
कहाँ दिखती हो तुम,
दिखती भी हो तो गुमसुम,
चिड़िया,आजकल तुम्हारी आवाज़
सुनाई कहाँ पड़ती है ?
सुबह-सुबह मेरी खिड़की पर
तुम्हारा ज़ोर-ज़ोर से,
अधिकार से चहचहाना.
मैं आँखें बंद करके
महसूस करता हूँ तुम्हारी आवाज़,
फिर निहारता हूँ तुम्हें
जब तक तुम फुर्र नहीं हो जाती.
चिड़िया, तुम खूब खिड़की पर आया करो,
खूब चहचहाया करो,
यहाँ तक कि रातों को भी,
नींद उड़ा दो मेरी
ताकि चैन आ जाय मुझे.
ईंट-पत्थर के इस जंगल में
कहाँ दिखती हो तुम,
दिखती भी हो तो गुमसुम,
चिड़िया,आजकल तुम्हारी आवाज़
सुनाई कहाँ पड़ती है ?