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शनिवार, 27 फ़रवरी 2021

५३९.यात्रा




धड़धड़ाती हुई ट्रेन 

गुज़रती है पुल के ऊपर से,

नीचे बह रही है विशाल नदी,

उसकी लहरें उछल-उछलकर 

लील जाना चाहती है सब कुछ.


आँखें बंद कर लेता हूँ मैं,

विनती करता हूँ पटरियों से,

संभाले रखना ट्रेन को,

प्रार्थना करता हूँ ट्रेन से,

रुकना नहीं, सर्र से निकल जाना.


भूल जाता हूँ मैं 

कि यह आख़िरी नदी नहीं है,

आगे और भी नदियाँ हैं,

जिन्हें मुझे पार करना है. 

गुरुवार, 25 फ़रवरी 2021

५३८. आत्मा


कौन कहता है 

कि आत्मा नहीं मरती,

मैं रोज़ देखता हूँ,

शरीर को ज़िन्दा रहते 

और आत्मा को मरते.


मैं रोज़ देखता हूँ 

कि शरीर मज़बूत होते जाते हैं 

और आत्माएं कमज़ोर,

आख़िर में शरीर बच जाता है 

और आत्मा मर जाती है.


एक दिन शरीर भी मर जाता है,

उसे जला दिया जाता है 

या दफना दिया जाता है,

अंतिम संस्कार शरीर का होता है,

आत्मा का हो ही नहीं सकता,

वह तो पहले ही मर चुकी होती है.

मंगलवार, 23 फ़रवरी 2021

५३७. कौए


पिता, तुम्हें याद है न,

कौए मुझे कितने नापसंद थे,

सख़्त नफ़रत थी मुझे 

उनकी काँव-काँव से,

उनका मुंडेर पर आकर बैठना 

बिल्कुल नहीं सुहाता था मुझे,

उड़ा देता था मैं उन्हें 

तरह-तरह के उपाय करके.


पर जब से तुम गए हो,

मुझे कौए अच्छे लगते हैं,

उनकी काँव-काँव अब 

कर्कश नहीं लगती मुझे.

मैं बुलाता हूँ उन्हें

कटोरी में पकवान रखकर, 

इंतज़ार करता हूँ उनका, 

पर वे आते ही नहीं,

दूर से देखते रहते हैं.


पिता, अगर उस झुण्ड में तुम हो,

तो चले आओ अपनी मुंडेर पर,

अब मैं पहले जैसा नहीं रहा,

अब मुझे कौओं से प्यार हो गया है.


शनिवार, 20 फ़रवरी 2021

५३६. मृत्य के बाद




ज़िन्दगी भर मैं हिन्दू बना रहा,

पर ज़रूरी नहीं कि मृत्यु के बाद 

मेरा शरीर भी सिर्फ़ हिन्दू बना रहे.


मेरी मौत के बाद 

मेरा शरीर थोड़ा जला देना,

थोड़ा दफना देना,

थोड़ा चील-कौवों को खिला देना.


मैं चाहता हूँ 

कि मौत के बाद 

मैं सिर्फ़ हिन्दू न रहूँ,

मुस्लिम, ईसाई, पारसी 

जैन और सिख भी बन जाऊं.


जो काम मैं ख़ुद न कर सका,

अपने बेजान शरीर से कराना चाहता हूँ.

मंगलवार, 16 फ़रवरी 2021

५३५. गाँव में बैलगाड़ियाँ


मेरे गाँव में सुबह-सुबह 

बैलगाड़ियाँ आती थीं,

भरी होती थीं उनमें

खेतों की ताज़ी सब्जियाँ,

सामने बैठे रहते थे 

बैलों को हाँकते किसान.


उनके पीछे-पीछे आता था 

उनींदा-सा सूरज,

जिधर से बैलगाड़ियाँ आती थीं,

मेरे गाँव में सूरज 

उधर से ही उगता था.


शाम को बैलगाड़ियाँ 

वापस लौट जाती थीं,

सूरज भी चल पड़ता था 

आराम करने दूसरी ओर 


आजकल मेरे गाँव में 

कोई बैलगाड़ी नहीं आती,

आजकल मेरे गाँव में सूरज 

पूरब में उगता है

और पश्चिम में डूबता है.

शनिवार, 13 फ़रवरी 2021

५३४. घास



घास के कुछ तिनके 

औंधे मुँह पड़े हैं,

सारी दुनिया से बेख़बर,

अपने आप में मस्त.


कुछ तिनके ऐसे भी हैं,

जो सीधे खड़े हैं,

उन्हें डर है कि 

अगर आसमान गिर पड़ा,

तो उनका क्या होगा.


हो सकता है,

उन्हें यह भी लगता हो 

कि अगर आसमान गिर पड़ा,

तो शायद उसे 

वे अपने सिर पर रोक लें.

गुरुवार, 11 फ़रवरी 2021

५३३. तार पर क़तार



बहुत सारी चिड़ियाँ 

तार पर बैठी हैं क़तार में,

जैसे सुस्ता रही हों 

एक लम्बी उड़ान के बाद

या तैयारी में हों 

एक लम्बी उड़ान की.


लगता है, चिड़ियाँ भोजन के लिए बैठी हैं 

और किसी ने सामने से टेबल हटा दी है,

यह भी हो सकता है 

कि वे गंभीर चर्चा के लिए 

इकठ्ठा हुई हों 

और सोच रही हों 

कि वर्तमान दौर में 

नई चिड़ियों को जन्म देना 

कितना सही होगा.

सोमवार, 8 फ़रवरी 2021

५३२. गुलाब



असली गुलाब चाहिए,

तो कांटे भी स्वीकार करो,

वरना काग़ज़ के गुलाब ढूंढो,

उनमें न सुगंध होगी,न कांटे,

कांटे हुए भी, तो चुभेंगे नहीं.

बुधवार, 3 फ़रवरी 2021

५३१. डोर



कल रात बहुत रोया आसमान,

उसके दुःख से दुखी थी ज़मीन भी,

घास की कोरों पर आँसू थे सुबह तक.


मुस्कराएगा थोड़ी देर में आसमान,

खिल उठेगी उसे देखकर धरती,

सूख जाएंगे घास पर चमकते आँसू.


एक दूजे से दूर हैं धरती और आकाश,

मिल नहीं सकते आपस में कभी भी,

फिर भी कोई-न-कोई डोर तो है,

जो बांधे हुए है एक को दूसरे से .