रिटायरमेंट की अगली सुबह
मैं अच्छे मूड में था,
अख़बार खोल रखा था,
इत्मीनान से पढ़ रहा था,
बीच-बीच में गर्म चाय की
चुस्कियाँ भी चल रही थीं.
सोचा,बेटी,जो बड़ी हो गई थी,
उससे ख़ूब बातें करूंगा,
सालों बाद फ़ुर्सत मिली थी,
सालों की क़सर पूरी करूंगा.
अचानक वह अंदर से आई
और सर्र से निकल गई,
अब जब मेरे पास फ़ुर्सत थी,
उसके पास वक़्त नहीं था.