मैं नहीं लिख पाता कोई कविता,
पर आज तुम नहीं हो,
तो शब्द बरस रहे हैं,
जैसे दूर कहीं पहाड़ों पर
हल्के-हल्के पड़ रही हो बर्फ़,
सेमल के पेड़ से जैसे
गिर रहे हों रुई के फ़ाहे,
जैसे रात की रानी गिरा रही हो
पीली डंडियोंवाले सफ़ेद फूल,
जैसे शरद की रात में
पत्तियों पर बरस रही हों
ओस की बूँदें.
आज तुम नहीं हो,
तो उदास हूँ मैं,
लिख रहा हूँ
एक के बाद एक कविता,
अगर ज़िन्दा रखना है मुझे
अपने अन्दर का कवि,
तो तुमसे दूरी बहुत ज़रूरी है.