तितली,
तुम कभी इस फूल पर
तो कभी उस फूल पर
क्यों बैठती रहती हो?
एक से बंधकर तो देखो,
ठहराव में जो आनंद है,
भटकाव में नहीं है.
**
तितली,
अभी तो वसंत है,
चारों ओर फूल खिले हैं,
पर पतझड़ में भी
कभी चली आया करो,
पौधों को अच्छा लगेगा.
**
तितली,
कई दिनों से
यह सूखा फूल
डाली से अटका है,
तुम एक बार आ जाओ,
इसे मुक्त करो.