सोमवार, 27 फ़रवरी 2023

७००. तितली

 


तितली,

तुम कभी इस फूल पर 

तो कभी उस फूल पर  

क्यों बैठती रहती हो?

एक से बंधकर तो देखो,

ठहराव में जो आनंद है,

भटकाव में नहीं है. 

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तितली,

अभी तो वसंत है,

चारों ओर फूल खिले हैं,

पर पतझड़ में भी

कभी चली आया करो,

पौधों को अच्छा लगेगा. 

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तितली,

कई दिनों से 

यह सूखा फूल 

डाली से अटका है,

तुम एक बार आ जाओ,

इसे मुक्त करो.  

शनिवार, 25 फ़रवरी 2023

६९९. इंतज़ार

 


मैं तुम्हें सालों से चाहता हूँ, 

पर कभी कह नहीं पाया, 

तुम्हारी आँखों में मुझे 

कभी प्यार दिखता था, 

कभी सिर्फ़ दोस्ती, 

अपने दिल की बात 

मैं तुमसे कैसे कहता, 

मुझे  ठुकराए जाने का डर

अपनाए जाने की उम्मीद से ज़्यादा था। 


होने को तो हो सकता था

कि तुम सुनकर उछल पड़ती, 

कह देती कि तुम्हें इसी का इंतज़ार था, 

पर यह भी तो हो सकता था

कि तुम्हें इसमें मेरा छिछोरापन दिखता। 



मैं मानता हूँ

कि थोड़े में ख़ुश हो जाने वाला

पुराने ज़माने का प्रेमी नहीं हूँ मैं, 

मुझे या तो पूरी हाँ चाहिए

या कुछ भी नहीं, दोस्ती भी नहीं। 



सुनो, तुम्हारी हाँ सुनने के लिए

मैं अगले जन्म का इंतज़ार भी कर सकता हूँ, 

हालांकि मैं जानता हूँ

कि पुनर्जन्म जैसी कोई चीज़ नहीं होती। 



सोमवार, 20 फ़रवरी 2023

६९८. हिचकी

 


बेटी,

तुम्हें हिचकी नहीं आती,

इसका यह मतलब नहीं 

कि मैं तुम्हें याद नहीं करता,  

तुम तो हमेशा मेरे दिल में हो,

हिचकी तो तुम्हें तभी आएगी,

जब मैं कभी-कभार तुम्हें याद करूँ. 

**

बेटी,

मेरी फ़िक्र मत करना,

मैं बिल्कुल ठीक हूँ,

बस एक ही कमी है

कि आजकल मुझे हिचकी नहीं आती. 

**

बेटी,

शाम से हिचकी आ रही है,

लगता है,

तुमने मुझे याद किया है,

अब दिल चाहता है 

कि कोई कौवा आए,

घर की मुंडेर पर बैठे,

कांव-कांव करे. 

शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2023

६९७.तितली


 

तितली के पीछे मत भागो,

उसे दूर से देखो,

अगर वह डर गई,

तो पर होते हुए भी

उड़ नहीं पाएगी. 


अगर भागना ही है,

तो भाग लो उसके पीछे,

पर उसे पकड़ना नहीं,

बहुत नाज़ुक है वह,

चोट न लग जाए उसे. 


अगर पकड़ भी लो,

तो छोड़ देना उसे,

एक छोटी-सी तितली को 

क़ैद में रखकर 

तुम्हें क्या मिलेगा?

उसकी जगह 

तुम्हारी मुठ्ठी में नहीं,

फूलों की पंखुड़ियों पर है. 



गुरुवार, 2 फ़रवरी 2023

६९६. पिता

 




पिता,

तुम्हारे जाने के बाद 

मैंने जाना 

कि गहरे धंसे हुए हो तुम 

मेरे अंदर,

फैलती ही जा रही हैं                                                                                       

तुम्हारी जड़ें,

मरे नहीं हो तुम,

पहले से ज़्यादा ज़िंदा हो,

मरने के बाद तुम मुझमें. 


**

पिता,

बहुत दिन हुए 

तुम्हारी आवाज़ सुने,

कभी मैं भी आऊंगा,

लेटूँगा तुम्हारी बग़ल में,

तुम कुछ कह पाओगे न,

मैं कुछ सुन पाऊंगा न ?