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गुरुवार, 28 जुलाई 2022

६५८.आख़िरी मौक़ा



उसने अपने जीवन में 

कभी कुछ नहीं बोला,

जहाँ बोलना चाहिए था,

वहाँ भी वह चुप रहा. 


कई बार उसे लगा 

कि वह बोलने से ख़ुद को 

रोक नहीं पाएगा,

पर उसने अपनी हथेली 

अपने मुँह पर रख ली. 


उसे अपने न बोलने पर 

बहुत गुस्सा आता था,

पर उसने कुछ नहीं कहा,

उसे जितना गुस्सा आता था,

उससे ज़्यादा डर लगता था. 


मौत से ठीक पहले भी 

वह बोलने का साहस 

जुटा नहीं पाया,

जबकि उसे पता था 

कि उसके लिए बोलने का 

यह आख़िरी मौक़ा था.


रविवार, 10 जुलाई 2022

६५७.सपना


कभी-कभी मैं सोचता हूँ 

कि क्या सपना वही होता है,

जो हमें लगता है कि सपना है? 


हम जब सपना देखते हैं,

तो कहाँ पता होता है हमें 

कि जो हम देख रहे हैं,

हक़ीक़त नहीं, एक सपना है? 


सोते हुए हम जो देखते हैं,

उसे देखना कैसे कह सकते हैं?

वह तो अनुभव करना है,

दुखी होना है, ख़ुश होना है. 


कभी-कभी मैं सोचता हूँ 

कि जिसे हम जीवन समझते हैं, 

कोई लम्बा सपना तो नहीं?

जिसे हम मरना कहते हैं,

किसी लम्बे सपने का टूटना तो नहीं?



कभी-कभी मैं सोचता हूँ 

कि जीवन अगर सपना है,

तो सपना क्या है?

क्या नींद के अंदर भी कोई नींद है?

क्या सपने के अंदर भी कोई सपना है?


बुधवार, 6 जुलाई 2022

६५६. कुर्सियाँ

 



ये पुरानी कुर्सियां 

तब तक स्वस्थ थीं,

जब तक बैठक में थीं,

पर सबको चुभती थीं. 


नया फ़र्नीचर आया,

तो इनके लिए 

न बैठक में जगह थी,

न किसी कमरे में,

स्टोर-रूम में भी नहीं. 


आँगन में रखी कुर्सियाँ 

अब धूप में तपती हैं,

बारिश में भीगती हैं,

तिल-तिल कर मरती हैं. 


सब परेशान हैं इनसे,

कबाड़ी भी कहता है,

क्या करूँ मैं इनका 

अब इनमें बचा ही क्या है?


शुक्रवार, 1 जुलाई 2022

६५५. तस्वीर

 



मैंने तुम्हारी तस्वीर देखी है,

तुम्हें नहीं देखा,

तुम्हारी तस्वीर को चिपकाया है, 

तुम्हें नहीं,

तुम्हारी तस्वीर से बातें की हैं,

तुमसे नहीं. 


बहुत मज़े से गुज़री है ज़िन्दगी 

तुम्हारी तस्वीर के साथ,

अब तुम न ही मिलो, तो बेहतर है.