उसने अपने जीवन में
कभी कुछ नहीं बोला,
जहाँ बोलना चाहिए था,
वहाँ भी वह चुप रहा.
कई बार उसे लगा
कि वह बोलने से ख़ुद को
रोक नहीं पाएगा,
पर उसने अपनी हथेली
अपने मुँह पर रख ली.
उसे अपने न बोलने पर
बहुत गुस्सा आता था,
पर उसने कुछ नहीं कहा,
उसे जितना गुस्सा आता था,
उससे ज़्यादा डर लगता था.
मौत से ठीक पहले भी
वह बोलने का साहस
जुटा नहीं पाया,
जबकि उसे पता था
कि उसके लिए बोलने का
यह आख़िरी मौक़ा था.