२३.गृहिणी
सुबह से शाम तक जुटी रहती है गृहिणी,
चौका-चूल्हा,झाड़ू-पोंछा,खेत-खलिहान,
हर जगह पिली रहती है गृहिणी.
खाना कम, डांट ज्यादा खाती है गृहिणी,
बात-बात पर झिड़की,अपमान अनदेखी,
मर-मर कर जीती रहती है गृहिणी.
सब कुछ चुपचाप सहती है गृहिणी,
देखकर अनदेखा,सुनकर अनसुना,
बस मन ही मन उबलती है गृहिणी.
गृहिणी को पसंद है ओखली-मूसल, सिलबट्टा,
कूट डालती है अन्दर का सारा गुस्सा,
पीस डालती है सारी टीस चटनी के साथ
तैयार हो जाती है अगले दिन के लिए गृहिणी.
सुबह से शाम तक जुटी रहती है गृहिणी,
चौका-चूल्हा,झाड़ू-पोंछा,खेत-खलिहान,
हर जगह पिली रहती है गृहिणी.
खाना कम, डांट ज्यादा खाती है गृहिणी,
बात-बात पर झिड़की,अपमान अनदेखी,
मर-मर कर जीती रहती है गृहिणी.
सब कुछ चुपचाप सहती है गृहिणी,
देखकर अनदेखा,सुनकर अनसुना,
बस मन ही मन उबलती है गृहिणी.
गृहिणी को पसंद है ओखली-मूसल, सिलबट्टा,
कूट डालती है अन्दर का सारा गुस्सा,
पीस डालती है सारी टीस चटनी के साथ
तैयार हो जाती है अगले दिन के लिए गृहिणी.