रविवार, 26 फ़रवरी 2012

२३.गृहिणी 


सुबह से शाम तक जुटी रहती है गृहिणी,
चौका-चूल्हा,झाड़ू-पोंछा,खेत-खलिहान,
हर जगह पिली रहती है गृहिणी.


खाना कम, डांट ज्यादा खाती है गृहिणी,
बात-बात पर झिड़की,अपमान अनदेखी,
मर-मर कर जीती रहती है गृहिणी.


सब कुछ चुपचाप सहती है गृहिणी,
देखकर अनदेखा,सुनकर अनसुना,
बस मन ही मन उबलती है गृहिणी.


गृहिणी को पसंद है ओखली-मूसल, सिलबट्टा,
कूट डालती है अन्दर का सारा गुस्सा,
पीस डालती है सारी टीस चटनी के साथ 
तैयार हो जाती है अगले दिन के लिए गृहिणी.

शनिवार, 18 फ़रवरी 2012

२२.वसंत


कितना सुंदर है वसंत!


बीत गए दिन अब
कडकडाती सर्दी के,
ख़त्म हुई खींचतान
फटी-पुरानी चादर-सी
कम्बल के लिए.


नहीं चिपकना पड़ता अब
लड़ाई के बाद भाई से,
नहीं सहनी पड़ती रातों को
बदबू उसके बदन की -
तपिश की खोज में.


नहीं खोजनी पड़ती टहनियां 
सुबह से शाम तक 
ताकि रातें बीत सकें 
उनके सहारे जैसे-तैसे.


जाड़े को लील गया,
कितना सुन्दर है वसंत!

गुरुवार, 9 फ़रवरी 2012

२१.माँ

कितनी अच्छी हो तुम, माँ !

कह सकता हूँ तुमसे
मन की सारी बातें,
यह कि मेरे दोस्त आएँ
तो अंदर ही रहना,
सामने आओ भी
तो अच्छी साड़ी पहन 
बाल संवारकर आना
और दूरवाली कुर्सी पर बैठना.

उनकी नमस्ते का उत्तर
हाथ जोड़कर देना,
हो सके तो चुप ही रहना,
बोलना ही हो तो
ज़रा ध्यान रखना,
शर्म को सर्म,
ग़ज़ल को गजल मत कहना.

उनके सामने चाय न पीना,
सुड़कने कि आवाज़ आएगी.

मेरी इतनी सी बात मानोगी न,
मेरी अच्छी,प्यारी, माँ ?