२१.माँ
कितनी अच्छी हो तुम, माँ !
कह सकता हूँ तुमसे
मन की सारी बातें,
यह कि मेरे दोस्त आएँ
तो अंदर ही रहना,
सामने आओ भी
तो अच्छी साड़ी पहन
बाल संवारकर आना
और दूरवाली कुर्सी पर बैठना.
उनकी नमस्ते का उत्तर
हाथ जोड़कर देना,
हो सके तो चुप ही रहना,
बोलना ही हो तो
ज़रा ध्यान रखना,
शर्म को सर्म,
ग़ज़ल को गजल मत कहना.
उनके सामने चाय न पीना,
सुड़कने कि आवाज़ आएगी.
मेरी इतनी सी बात मानोगी न,
मेरी अच्छी,प्यारी, माँ ?
बेहतरीन रचना..
जवाब देंहटाएंसच है..माँ समझ जाती है हमारे दिल की हर बात..
और मान भी लेती है..भले उसका दिल भीतर रोता रहे.
शुभकामनाएँ
बेचारी माँ ...सब बर्दाश्त करती है ..
जवाब देंहटाएंकैसा विरोधाभास है जीवन में ..... जो माँ सब सिखाती है एक समय बच्चों को लगता है वो कुछ जानती समझती ही नहीं...... गहन अभिव्यक्ति....
जवाब देंहटाएंdhikkar hai ...
जवाब देंहटाएंkitni gahri baat ko kitna aasani se kah paate hai aap,aap ke blog par aakr khushi huee
जवाब देंहटाएंसच में हम माँ को अपने ही रूप में दूसरों के सामने स्वीकार नहीं कर पाते हैं, जब कि माँ हमें किसी भी रूप में प्रेम से स्वीकार कर लेती है...बहुत सुंदर और सटीक रचना...
जवाब देंहटाएंबड़ा महीन कटाक्ष किया है आपने। वाह!
जवाब देंहटाएं.बहुत सुंदर और सटीक रचना...
जवाब देंहटाएं'maa' ko 'mom' banae ki zaroorat ya koshish kyon !
जवाब देंहटाएंsunder kavita !