२२.वसंत
कितना सुंदर है वसंत!
बीत गए दिन अब
कडकडाती सर्दी के,
ख़त्म हुई खींचतान
फटी-पुरानी चादर-सी
कम्बल के लिए.
नहीं चिपकना पड़ता अब
लड़ाई के बाद भाई से,
नहीं सहनी पड़ती रातों को
बदबू उसके बदन की -
तपिश की खोज में.
नहीं खोजनी पड़ती टहनियां
सुबह से शाम तक
ताकि रातें बीत सकें
उनके सहारे जैसे-तैसे.
जाड़े को लील गया,
कितना सुन्दर है वसंत!
कितना सुंदर है वसंत!
बीत गए दिन अब
कडकडाती सर्दी के,
ख़त्म हुई खींचतान
फटी-पुरानी चादर-सी
कम्बल के लिए.
नहीं चिपकना पड़ता अब
लड़ाई के बाद भाई से,
नहीं सहनी पड़ती रातों को
बदबू उसके बदन की -
तपिश की खोज में.
नहीं खोजनी पड़ती टहनियां
सुबह से शाम तक
ताकि रातें बीत सकें
उनके सहारे जैसे-तैसे.
जाड़े को लील गया,
कितना सुन्दर है वसंत!
खुबसूरत रचना अभिवयक्ति..
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण बहुत अच्छी अभिव्यक्ति,..सुंदर रचना...
जवाब देंहटाएंMY NEW POST ...काव्यान्जलि...सम्बोधन...
वाह!!!!!भावपूर्ण बहुत अच्छी अभिव्यक्ति,सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंMY NEW POST ...सम्बोधन...
नहीं खोजनी पड़ती टहनियां
जवाब देंहटाएंसुबह से शाम तक
ताकि रातें बीत सकें
उनके सहारे जैसे-तैसे.... अब तो पंखे का वक़्त आ गया
अब तो साथ फूलों का है....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर..
बहुत ख़ूबसूरत वसन्त का स्वागत...
जवाब देंहटाएंati sunder
जवाब देंहटाएंbahut sundar rachna. sheet aur vasant ke sath manviye samvedna ka judaav, bahut achchhe bhaav. shubhkaamnaayen.
जवाब देंहटाएंबहुत,बेहतरीन अच्छी प्रस्तुति,सुंदर सटीक रचना के लिए बधाई,.....
जवाब देंहटाएंमै पहले से ही आपका समर्थक बन गया हूँ आप भी बने मुझे खुशी होगी
NEW POST...काव्यांजलि...आज के नेता...
NEW POST...फुहार...हुस्न की बात...
खूबसूरत प्रस्तुति है आपकी.
जवाब देंहटाएंजाते जाते भी जाड़ा बसंत को टंगड़ी मार ही देता है,ओंकार जी.
आभार.