मैं तलाश में हूँ
कि कहीं से थोड़ा
दर्द मिल जाय.
न उनसे दर्द मिला,
जिनका धर्म अलग है,
न उनसे जिनकी जाति.
उनसे भी सुख ही मिला,
जिनका रंग अलग है,
भाषा भिन्न है.
नीरस हो गई है ज़िन्दगी,
अतिरेक हो गया है सुख का,
जीने के लिए अब दर्द ज़रूरी है.
थक गया हूँ मैं
दर्द खोजते-खोजते,
कोई मुझे सही-सही बताए
कि आख़िर दर्द कहाँ रहता है.
कि कहीं से थोड़ा
दर्द मिल जाय.
न उनसे दर्द मिला,
जिनका धर्म अलग है,
न उनसे जिनकी जाति.
उनसे भी सुख ही मिला,
जिनका रंग अलग है,
भाषा भिन्न है.
नीरस हो गई है ज़िन्दगी,
अतिरेक हो गया है सुख का,
जीने के लिए अब दर्द ज़रूरी है.
थक गया हूँ मैं
दर्द खोजते-खोजते,
कोई मुझे सही-सही बताए
कि आख़िर दर्द कहाँ रहता है.