सुबह-सुबह अँधेरा छाया है,
पर घबराने की बात नहीं,
कभी-कभी ऐसा हो जाता है.
यह रात नहीं है,
रात तो बीत चुकी है,
बस सूरज नहीं निकला है,
वह लड़ रहा होगा,
निकलने की कोशिश कर रहा होगा.
अँधेरा कितना ही गहरा हो,
सूरज लड़ना नहीं छोड़ेगा,
वह निकलेगा ज़रूर,
अभी नहीं,तो थोड़ी देर में,
आज नहीं तो कल.
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 16 फरवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंजो लगा रहता है वो दिखने लगता है।
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति।
आइयेगा- प्रार्थना
वाह लाजवाब आशा से लबरेज।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंवाह !बहुत ही सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंसादर
वाह!!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सार्थक सृजन।
उम्दा लिखावट ऐसी लाइने बहुत कम पढने के लिए मिलती है धन्यवाद् Aadharseloan (आप सभी के लिए बेहतरीन आर्टिकल संग्रह जिसकी मदद से ले सकते है आप घर बैठे लोन) Aadharseloan
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