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शुक्रवार, 28 दिसंबर 2012

६२.सांता से

सांता, अगली बार क्रिसमस पर आओ 
तो कुछ अलग-से तोहफे लाना.

अगली बार लाना एक सड़क,
जिस पर चल सके दीदी बेखौफ़,
एक बाज़ार जिससे गुज़रने पर 
फब्तियां न कसी जांय उस पर, 
एक गली जो गहरे अँधेरे में भी
उसे लगे महफूज़... 

और सांता, मैंने सुना है कि
कुछ बसों में बैठकर रात को 
जानवर शिकार पर निकलते हैं,
बहुत डर लगता है उनसे दीदी को,
बहुत चिंता होती है माँ-पिताजी को.

इस बार क्रिसमस पर थोड़ा समय लेकर आना,
इन जानवरों को चुन-चुन कर साथ ले जाना,
ध्यान रखना, कहीं वापस न लौट आएं ये.

सांता, अगले क्रिसमस पर मेरे लिए 
टाफियां, केक और खिलौने मत लाना,
बस उतना कर देना जितना मैंने कहा है,
अभी तो तुम्हारे पास एक साल का वक्त है.

रविवार, 23 दिसंबर 2012

६१.सूरज

सूरज, कहाँ-कहाँ से चले आते हो तुम 
बेगाने घरों में अपनी किरणें बिखेरने,
दरवाज़ों,खिड़कियों, रोशनदानों से,
यहाँ तक कि छोटे-छोटे सूराखों से.

कितनी परवाह है तुम्हें ठिठुरनेवालों की,
कितने प्यार से लुटाते हो तुम ऊष्मा,
महल-झोंपड़ी, खेत-खलिहान, वन-उपवन,
कुछ भी तो नहीं है तुम्हारे स्नेह से परे.

जब कभी तुम कोहरे से घिर जाते हो,
कितना छटपटाते हो बाहर निकलने को,
अपनी बेबसी पर रोना आता होगा तुम्हें 
ठिठुरनेवालों का ख्याल सताता होगा तुम्हें.

सूरज, तुम कभी थकते क्यों नहीं,
सूरज, तुम कभी रुकते क्यों नहीं,
ठिठुरनेवाले जब यहाँ कम्बलों में दुबके होंगे,
तुम कहीं और चमक रहे होगे.

सूरज,क्या अपने बारे में भी सोचा है तुमने,
क्या बांटने का तुम्हारा काम कभी खत्म होगा,
क्या अपने लिए भी कुछ बचाया है तुमने,
तुम्हारी दरियादिली की कोई तो सीमा होगी ?



शुक्रवार, 14 दिसंबर 2012

६०. असंतुलन

आजकल मेरे सिर का बोझ 
मेरी गर्दन से सहन नहीं होता, 
सिर से अलग तो हो नहीं सकती,
बस दर्द से कराहती रहती है.

मेरे घुटनों से सहन नहीं होता 
आजकल मेरे बदन का बोझ,
साथ रहना तो मजबूरी है,
बस दर्द से परेशान रहते हैं.

मेरी ज़रूरतों का बोझ नहीं उठता 
आजकल मेरी मेहनत से,
मेरी ख्वाहिशों का बोझ 
मेरे ईमान से सहन नहीं होता.

इन दिनों मैं संतुलन में नहीं हूँ,
लड़ रहा हूँ अपने आप से,
आजकल मेरे ही दो हिस्से 
एक दूसरे के विरोध में हैं.

शुक्रवार, 7 दिसंबर 2012

५९.मैं और तुम

कभी-कभी मुझे लगता है 
कि मैं तुम्हारी तरह चलूँ,
तुम्हारी तरह हँसू,
तुम्हारी तरह सोचूँ,
तुम्हारी तरह बोलूँ,
क्यों न मैं तुम बन जाऊँ,
तुम्हें भी लगता है 
कि क्यों न तुम मैं बन जाओ.

देखो न, इस कोशिश में,
न मैं तुम बन पा रहा हूँ 
और न तुम मैं,
बल्कि मैं मैं नहीं रहा 
तुम तुम नहीं रही.

अच्छा होगा कि 
मैं बस मैं बना रहूँ
और तुम बस तुम.

मैं तुम बनूँ 
और तुम मैं 
इससे तो अच्छा है 
कि मैं और तुम
हम बन जाएँ.