क्या जला रहे हो इस बार
होलिका दहन में?
गोबर के उपले?
कोयला, लकड़ियाँ?
बस यही सब?
जला देना इस बार
थोड़ा-सा अहम्,
थोड़ा-सा गुस्सा,
थोड़ा-सा लालच,
थोड़ा-सा स्वार्थ.
और ध्यान रहे,
प्रह्लाद को बचाने में
इतना न खो जाना
कि जल जाय
तुम्हारा स्वाभिमान,
राख हो जाय
तुम्हारी संवेदना.
इस बार होलिका दहन में
कुछ और बचे न बचे,
बचा लेना किसी भी तरह
अपनी आत्मा,
अपनी इंसानियत.
होलिका दहन में?
गोबर के उपले?
कोयला, लकड़ियाँ?
बस यही सब?
जला देना इस बार
थोड़ा-सा अहम्,
थोड़ा-सा गुस्सा,
थोड़ा-सा लालच,
थोड़ा-सा स्वार्थ.
और ध्यान रहे,
प्रह्लाद को बचाने में
इतना न खो जाना
कि जल जाय
तुम्हारा स्वाभिमान,
राख हो जाय
तुम्हारी संवेदना.
इस बार होलिका दहन में
कुछ और बचे न बचे,
बचा लेना किसी भी तरह
अपनी आत्मा,
अपनी इंसानियत.