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शनिवार, 29 मार्च 2014

१२०.सीमा

मैं ध्रुवतारा नहीं हूँ,
पर मुझे कमज़ोर मत समझो,
मैं उतना छोटा नहीं हूँ,
जितना ज़मीन से दिखता हूँ.

तुम्हें बरगला रही हैं 
तुम्हारी अपनी सीमाएं,
ज़रा नज़दीक से देखो 
तो तुम्हें पता चले 
कि वास्तव में मैं क्या हूँ.

पर तुम कैसे नज़दीक आओगे,
कितना नज़दीक आओगे,
तुम्हारे नज़दीक आने की सीमा है.

दर्शक, तुम जहाँ हो, वहीँ रहो,
देखते रहो मेरा टिमटिमाना,
इसी सोच में खुश रहो
कि मैं कितना छोटा हूँ,
कितना प्रकाशहीन,
कितना बेबस!

शनिवार, 22 मार्च 2014

११९. मेंढक


मैंने सुना है कि
मेंढक लुप्त हो रहे हैं,
फिर चुनाव के दौरान 
इतने कहाँ से निकल आते हैं?
बिना बारिश के भी 
इनकी टर्र-टर्र क्यों सुनाई पड़ती है?

मुझे नहीं लगता 
कि मेंढक लुप्त हो रहे हैं,
ज़रूर कुछ भ्रम हुआ है,
मुझे तो लगता है 
कि इनकी बहुतायत हो गई है,
बस इनके निकलने और टरटराने का 
मौसम बदल गया है.

शनिवार, 1 मार्च 2014

११८. यह पल


ओस की बूँद ने आखिर 
खोज ही ली फूल की गोद,
अब चाहे तेज़ हवाएं आएं 
उसे गिराने,मिट्टी में मिलाने,
या सूरज की तेज़ किरण 
सोख ले उसे बेरहमी से,
या कोई अनजान हाथ
उसे अलग कर दे फूल से -
ओस की बूँद को परवाह नहीं.

बहुत खुश है वह
कि मंजिल पा ली है उसने,
अब सारे खतरों से बेखबर 
चुपचाप सोई है वह.

आनेवाले पल की चिंता में 
कैसे भूल जाए ओस की बूँद 
कि यह पल सबसे सुन्दर है,
यह पल, जब वह फूल की गोद में है.