मैं नहीं मानता
कि क़ानून अँधा होता है.
क़ानून बनानेवाले जानते हैं
कि किसके लिए
कैसा क़ानून बनाना है,
लागू करनेवाले जानते हैं
कि किसके मामले में
कैसे लागू करना है,
व्याख्या करनेवाले जानते हैं
कि किस व्यक्ति के लिए
क़ानून का क्या अर्थ होता है.
जिसे क़ानून की ज़रूरत
सबसे ज़्यादा होती है,
बस वही नहीं जानता
कि क़ानून क्या होता है,
उसे लागू कौन करता है,
कैसे करता है,
कि उसकी व्याख्या भी होती है.
क़ानून अँधा नहीं होता,
दरअसल जिसे क़ानून की
सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है,
वह अँधा होता है.
कि क़ानून अँधा होता है.
क़ानून बनानेवाले जानते हैं
कि किसके लिए
कैसा क़ानून बनाना है,
लागू करनेवाले जानते हैं
कि किसके मामले में
कैसे लागू करना है,
व्याख्या करनेवाले जानते हैं
कि किस व्यक्ति के लिए
क़ानून का क्या अर्थ होता है.
जिसे क़ानून की ज़रूरत
सबसे ज़्यादा होती है,
बस वही नहीं जानता
कि क़ानून क्या होता है,
उसे लागू कौन करता है,
कैसे करता है,
कि उसकी व्याख्या भी होती है.
क़ानून अँधा नहीं होता,
दरअसल जिसे क़ानून की
सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है,
वह अँधा होता है.